भारतीय संस्कृति के आधार यज्य को अपपतन करने की वामपंथी मानसिकता.

हमारे भारतीय ग्रंथों व गौरवशाली इतिहास को गोरे अंग्रेजो ने बदनाम करने में कोई कसर नही छोडीहै, वहीं आज काले अंग्रेज (अंग्रेजी की गुलाम मानसिकता वाले भारतीय) भी भारतीयता को बादनाम करने पर तुले है।मैंने वेदों के बारे में अपने पहले लेख मे बताया था कि किस प्रकार नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में वेदों को जंगली लोगो के जंगली गीत बताया था। आज उसी कड़ी मे मै आपको एक कम्युनिस्ट नेता अमृत पाद डांगे के लिखे एक ग्रन्थ के बारे में बताऊंगा

डांगे ने भारतीय संस्कृति पर एक पुस्तक लिखी है.उस पुस्तक मे उसने ऋग्वेदीय काल की चर्चा करते हुए यज्य के बारे में लिखा है,"यज्य नाम के सामूहिक महोत्सव के प्रसंग पर खूब मांस खाकर एवं खूब मदिरा पीकर वे पुरातन कालीन लोग अग्नि के चारों ओर सो जाते थे अथवा अपनी चुनी संगिनी सहित झोपडी में विहार के लिए चले जाते थे।"

अब वेदों में यज्य के बारे मे क्या लिखा है मै आपको बताता हूँ।

ऋग्वेद के प्रथम मंडल मे ही ३६ वें वर्ग के मन्त्र ५ में बताया गया है कि,"जो यज्य धूम से शोधे हुए पवन हैं,वे अच्छे राज्य के कराने वाले होकर रोग आदि दोषों का नाश करते हैं और जो अशुद्ध ,अर्थात दुर्गंध आदि दोषों से भरे हुए है सुखों का नाश करते हैं,इससे मनुष्यों को चाहिए कि अग्नि मे होम द्वारा वायु की शुद्धि से अनेक प्रकार के सुखों को सिद्ध करें।"

सप्तम मंडल के द्वीतीय सूक्त के मन्त्र १ में बताया गया है कि,"हे !अग्नि हम आज जो तुम्हे समिधायें प्रदान करते है,उनको तुम स्वीकार करो.तुम इन संविधाओ को स्वीकार करके अच्छी तरह प्रदीप्त हो। पर्वत के ऊंचे भागों को तुम अपनी तप्त रश्मियों से स्पर्श करो और सूर्य की किरणों के साथ मिलो। पर्वत के शिखर पर भी यज्य करने चाहियें। उन यज्ञों से वायु मंडल शुद्ध होता है।"

सप्तम मंडल के द्वीतीय सूक्त में मन्त्र संख्या ८ में बताया गया है कि,"भारती देश की भाषा है। मात्रभाषा की संज्ञा भारती है.इला मात्रभूमि को कहते है। सरस्वती सतत बहने वाली संस्कृति है। मात्रभाषा,मात्रभूमि व मात्र्संस्क्रती ये तीन देवियाँ है। इन तीनो देवियों का सत्कार यज्य मे होना चाहिए। जो भी मनुष्य कर्म करे वे इन तीनो देवियों की उन्नति की द्रष्टि से किए जांय। ये तीनो देवियाँ अग्नि के ही रूप हैं। मात्रभाषा अग्नि का ही रूप है,क्यों कि अग्नि से ही वाणी उत्पन्न होती है। मात्रभूमि भी अग्नि का ही रूप है, क्यों कि भूमि अग्नि का ही स्थान है,और सभ्यता या संस्कृति भी अग्नि के सामान तेजस्वी होती है। इन तीनो देवियों की भक्ति सदा ही करनी चाहिए।"

तृतीय मंडल सूक्त ४ के मन्त्र ४ में बताया गया है कि ,"जो यज्य करता और यज्य कराने वाले हों, विद्य्वान हों,और सुंदर शुद्ध पद्धार्थों को अग्नि मै छोडे तो क्या सुख प्राप्त न होंगे।"

तृतीय मंडल के सूक्त ४ के मन्त्र ५ में बताया गया है कि ,"जो मनुष्य सुगंध्यादी युक्त पद्धार्थों के अग्नि में छोड़ने से वायु,वृष्टि,जल,ओषधि और अन्नो को अच्छे प्रकार से शोधे तो सब आरोग्य्पन को प्राप्त हों।"

यज्य के महत्त्व को बताने के लिए ऐसे कितने ही मन्त्र ऋग्वेद मे है। लेकिन नेहरू हो या हो कामरेड डांगे इनका कार्य भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का ही रहा है। मैक्समूलर जैसा वेदों को बदनाम करने वाले व्यक्ति ने मरने से कुछ ही समय पहले ये स्वीकार किया कि भारतीय संस्कृति सनातन है। वेद कम से कम १५००० वर्ष ओर हो सकता है कि लाखों वर्ष पूर्व लिखे गए हैं।

कामरेड डांगे अरे नही डंगर ने वेदों की कभी छवि भी न देखी हो,परंतु भारतीय संस्कृति के आधार यज्य के बारे में ऐसी बात लिखने से पहले उसके मष्तिष्क में क्या खुराफात जगी होगी ये तो मै नही बता सकता।किंतु इतना जरूर कह सकता हूँ कि भारतीय संस्कृति के आधार वेदों को बदनाम करने वाले व्यक्ति चाहे कोई भी हो देशभक्त नही हो सकता।

वेदों में यज्य के बारे मे पढ़कर पता चलता है कि उस समय के ऋषियों को वायुमंडल -शुद्धि का कितना ज्ञान था,क्यों कि आज शोध हो चुका है कि १० ग्राम देशी घी को अगर १० ग्राम चावल के साथ यज्य की आहुति के साथ यज्य कि अग्नि मे अर्पित किया जाय तो वायुमंडल मे १ टन ओक्सिजन पैदा होती है। वायु मंडल में अगर ओक्सिजन की अधिकता होगी तो वायुमंडल तो शुद्ध होगा ही ,साथ ही वर्षा की पूर्ती भी रहेगी क्यो कि ओक्सिजन -हाइड्रोजन का मिश्रण ही जल की उत्पत्ति का कारण है. वेदों मे इस बात का ज्ञान लाखों वर्ष पहले ही था। अगर आज पूरे विश्व में घर -घर में प्रतिदिन यज्य होवे,तो पूरे विश्व की प्रदुषण, सूखा जैसी समस्याएँ दूर हो सकती हैं।

तो बोलो यज्य भगवान् की जय।

टिप्पणियाँ

  1. त्यागीजी,
    आप मेरे ब्लॉग पर पधारे, मेरी ग़ज़ल 'कोई दरमियाँ नहीं होता' आपको अच्छी लगी, आभारी हूँ !
    भारतीय संस्कृति और संस्कारों की बात आज कितने लोग करते हैं ? आपके तेवर और लेखन के विषय को मेरी विनम्र स्वीकृति और समर्थन है ! जब सच के लिए कोई आवाज़ न उठती हो, एक अकेला स्वर ही सही, उठे तो सही... यह आलेख भी ख़ास है, अपने अनूठे अंदाज़ का, अनूठी विधा का... आभार !---आ.

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  2. aapne bhut hi achhi aur vaigyanik jankari bharteey sanskrti ke sandrbh me di hai .aap likhte rhe aise alikh bahut kam hote hai
    dhnywad

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  3. Dear Naveen,
    I am happy to go through your comments on the mentality of Indian communists on YAJNA. You deserve appreciation for this standard of work.......I visited Meenu Khare's Blog..but find you....lucky I am... God bless you....

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  4. धर्म, कर्मकांड, अनुष्ठान आदि पर एक जमाने से अपने अल्प ज्ञान का तमाशा दिखने वालों की कमी न रही है और आगे भी नहीं रहेगी. डांगे जी को वसीयत करनी थी कि मरणोपरांत उन्हें या उन जैसे प्रगतिशील, साम्यवादियों को अग्नि,जल आदि के हवाले न किया जाये, बल्कि कोई नवीन साम्यवादी तरीका अपनाया जाये.
    मित्र, वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि में वर्णित जनोपयोगी सामग्री-ज्ञान लोगों तक पहुंचाएं, किस बुद्धिमान का वक्तव्य क्या है, इस पर अपना समय नष्ट करने, उन्हें प्रचारित करने से कोई लाभ है क्या!
    मेरे ब्लॉग तक आने और अपनी कीमती राय देने के लिए मैं आभारी हूँ.

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  5. sarvat ji ved har vyakti nahi padh sakta.log to itihas me kya likha hai usko hi sach manege. isliye un tathakathit buddhimaano ka jikr to karna hi padega.

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  6. नवीन जी आप जो कार्य कर रहें हैं उससे सबसे बड़ी राष्ट्र सेवा है.

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  7. नवीन जी आप तो इतिहास के जानकार हैं, क्या आप मुझे ऐसी कोई पुस्तक बता सकते हैं जिसमें हिन्दू धर्म व सभ्यता से जुड़े तथ्योँ की विश्वस्त रूप से जानकारी मिले, जिस तरह से इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में पढाई जाती हो, मुझे अपने धर्म के बारे में जितना अधिक हो सके जानने की इच्छा है क्योंकि इसमें बहुत गहरा आध्यात्म है.

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  8. वर्षा जी आप महर्षि दयानंद सरस्वती कृत ऋग्वेदभाष्यभूमिका, विद्वान आचार्य पंडित उदयवीर शास्त्री की भाष्यार्थ सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन ,वैशेषिक दर्शन एवं ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन और मीमांसा दर्शन पढ़े . और दयानंद जी की सत्यार्थ प्रकाश भी पढ़े . आप को अपने धर्म का सम्पूर्ण ज्ञान इन्ही पुस्तकों से मिल जायेगा.

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  9. उपरोक्त पुस्तकों के पढने के पश्चात् आप ऋग वेद् पढ़े . सारे संसार का ज्ञान समाया हुआ है वेदों में.

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