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प्राचीन भारतीय विज्ञानं के सन्दर्भ में सुरेशसोनी(suresh soni) जी का विद्युत् शास्त्र से सम्बंधित लेख

अगस्त्य संहिता का विद्युत्‌ शास्त्र राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में पूना से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की। भारत में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले। यह शक संवत्‌ १५५० के करीब के थे। आगे चलकर इस संहिता के पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे डा। एम.सी. सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक श्री पी.पी. होले को वह दिया और उसे जांचने को कहा। अगस्त्य का सूत्र निम्न प्रकार था- संस्थाप्य मृण्मये पात्रेताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेनचार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥ दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥ अगस्त संहिताइसका तात्पर्य था, एक मिट्टी का पात्र (कठ्ठद्धद्यण्ड्ढद द्रदृद्य) लें, उसमें ताम्र पट्टिका (क्दृद्रद्रड्ढद्ध च्ण्ड्ढड्ढद्य) डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (ध्र्ड्ढद्य द्मठ्ठध्र्‌ क़्द्वद्मद्य) लगायें, ऊपर पारा (थ
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आप सभी को नववर्ष विक्रमी संवत 2068 की हार्दिक शुभकामनाएं मित्रों जब अब से 2 वर्ष पूर्व मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था ,तब सबसे प्रथम सम्राट विक्र्मद्वित्तीय के ऊपर दो लेख लिखे थे। विक्रमी संवत 2067 समाप्त हो रहा है। संवत 2068 का आरम्भ होने जा रहा है। भारतीय नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मै विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्र्माद्वितीय को नमन करते हुए वे दोनों लेख आपको दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ। विश्व विजेता सम्राट विक्रमादित्य ईसा से कई शताब्दी पूर्व भारत भू मि पर एक साम्रराज्य था मालव गण। मालव गण की राजधानी थी भारत की प्रसिद्ध नगरी उज्जेन । उज्जैन एक प्राचीन गणतंत्र राज्य था । प्रजावात्सल्या राजा नाबोवाहन की म्रत्यु के पश्चात उनके पुत्र गंधर्वसेन ने "महाराजाधिराज मालवाधिपति महेंद्राद्वित्तीय "की उपाधि धारण करके मालव गण को राजतन्त्र में बदल दिया । उस समय भारत में चार शक शासको का राज्य था। शक राजाओं के भ्रष्ट आचरणों की चर्चाएँ सुनकर गंधर्वसेन भी कामुक व निरंकुश हो गया। एकं बार मालव गण की राजधानी में एक जैन साध्वी पधारी।उनके रूप की सुन्दरता की चर्चा के कारण गंधर्व सेन