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जुलाई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शहीद उधम सिंह(udham singh) का परिवार आज मजदूरी कर अपना पेट पाल रहा है और सरकारों ने अब तक कुछ नहीं किया।

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मित्रों मेरे पास हाल ही में एक मेल आई है ,मेल नितिन अत्रे जी ने भेजी है.मेल के लिंक मे स्वतंत्र भारत में हरामी नेताओं की करतूत जग जाहिर होती है, कि किस प्रकार भडुए भारत पर राज करने लगे और किस प्रकार महान क्रांतिकारियों के परिवारों को आज दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है. http://www.ndtv.com/video/player/news/video-story/196485

यदि आप बटुकेश्वर दत्त(batukeshvar datt) हैं तो प्रमाण लाइए.

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एक वाक्य में क्रान्ति शब्द का अर्थ ’ प्रगति के लिये परिवर्तन की भावना एवँ आकाँक्षा ’ है । लोग साधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार से ही काँपने लगते हैं । यही एक अकर्मण्यता की भावना है , जिसके स्थान पर क्रान्तिकारी भावना जागृत करने की आवश्यकता है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रूढ़ीवादी शक्तियाँ मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं । यही परिस्थितियाँ मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं । क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी रूप पर ओतप्रोत रहनी चाहिये , जिससे कि रूढ़ीवादी शक्तियाँ मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिये सँगठित न हो सकें । यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव न रहे और वह नयी व्यवस्था के लिये स्थान रिक्त करती रहे , जिससे कि एक आदर्श व्यवस्था सँसार को बिगड़ने से रोक सके । यह है हमारा अभिप्राय जिसको हृदय में रख

राष्ट्र विरोधी व् हिन्दू विरोधी था गाँधी का असहयोग आन्दोलन

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मह्रिषी अरविन्द ने १९०९ में कहा था " प्रारंभ से ही कोंग्रेस ने राजनीति में सदैव अपनी द्रष्टि को समाज से अलग केवल ब्रिटिश शासन की स्वामिभक्ति की ओर ही लगाए रक्खा । " " १९०६ के आस - पास से ही कोंग्रेस में मतभेद शुरू हो गए थे । कोंग्रेस नरम व गरम दलों में विभाजित हो गयी थी । " नरम दल यानि अंग्रेजों की स्वामिभक्ति करने वाला दल था जिसके नेता थे गोखले व मोती लाल नेहरू । दूसरा गरम दल जिसके नेता लोक मान्य तिलक थे । तिलक का नारा था ," स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै उसे लेकर रहूँगा । " या कह सकते हैं कि कोंग्रेस का गरम दल वास्तव में एक राष्ट्रवादी कोंग्रेस का रूप था । यानि कि १९०६ से १९२० तक तिलक के नेर्तत्व में कोंग्रेस एक राष्ट्रवादी दल रहा । लेकिन १९१६ में गाँधी के अफ्रीका से आने के बाद स्थिति बदलनी शुरू हो गयी । सन १९२० में तिलक जी के स्वर्गवास के पश्चात अचानक परिस्थितियों ने अवसर दिया और गाँधी कोंग्रेस का ब