मेवाड़ राज्य की राजधानी चित्तौडग़ढ़ का राजप्रासाद। मेड़तिया राठौड़ जयमल्ल वीरमदेवोत,चूंडावत सरदार रावत साईदास, बल्लू सोलंकी, ईसरदास चहुवान, राज राणा सुलतान सहित दुर्ग के सभी प्रमुख रण बांकुरे सरदारों के तेजस्वी वेहरों पर चिन्ताभरी उत्सुकता दिखाई दे रही थी। सभी की निगाहें बादशाह अकबर के पास समझौता प्रस्ताव लेकर गए रावत साहिब खान चहुवान और डोडिया ठाकुर सांडा पर टिकी थी। अकबर के शिविर से लौटे दोनों ठाकुरों का मौन अच्छी खबर का परिचायक न होने के बावज़ूद भी वे युद्ध टलने की आशा न छोड़ पा रहे थे। वातावरण की निस्तब्धता भंग की जयमल्ल ने। उसने पूछा- ''क्या बात है सरदारों आपके चेहरों पर खिन्नता क्यों है? क्या बादशाह ने हमारी समझौते की पेशकश ठुकरा दी? अथवा उसमें कोई असंभव सी शर्त लगाई है?'' डोडिया ठाकुर ने मातृभूमि के लिये सर कटाने को तैयार बैठे जुझारू सरदारों की ओर देखा ''आप ठीक समझे। बादशाह चित्तौड़ विजय के साथ महाराणा उदयसिंह का समर्पण भी चाहता है। उसने कहा है कि महाराणा के हाजिर हुए बगैर किसी भी तरह संधि संभव नहीं है। बादशाह के अमीरों और सलाहकारों ने भी उसे समझौता कर ल...