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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कायर मनुष्य,कायर समाज व कायर राष्ट्र का कोई सहायक नहीं होता.

समझोतों से नहीं कभी भी युद्ध टला करते हैं। कायर जन ही इनसे खुद को स्वयं छला करते हैं।। स्वतंत्रता -काल से आज तक की कालावधि में पकिस्तान और भारत के मध्य लगभग १७५ बार से भी अधिक वार्तालापों के दौर चल चुके हैं। इस लम्बी वार्ताओं की कड़ी में उन सभी वार्तालापों के क्या परीणाम रहे,इसकी गहराई में जाने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही है। इसको संछेप में सीधे सीधे ही यही कहा जा सकता है कि पकिस्तान से भारत लगभग १७५ बार ही कूटनीतिक युद्ध में पराजित हो चुका है। १९४८ में पाकिस्तान के सैनिकों का कबाइलियों के वेश में आक्रमण रहा हो या १९६५ का युद्ध हो अथवा १९७१ या फिर १९९९ में कारगिल का युद्ध हो, भारत समर-छेत्र सैनिक विजय के प्राप्त करने के बावजूद भी बार बार हारा है। इन युद्दों में प्राप्त सैनिक विजय के लिए भारत का शासक वर्ग यदि अपनी पीठ थपथपाता है तो वह राष्ट्र को यह बतलाने का भी साहस करे कि विजय प्राप्त करने के उपरांत भी पाकिस्तान के किस भू-भाग को उसने भारत के अधिकृत किया है। अथवा कोन सा लाभ या लक्सय उसकी इन विजयों द्वारा प्राप्त किया गय

यहाँ देशद्रोही ही मंत्री व .संसद .........बनते है.

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सप्रग की पिछली सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर का नाम तो आप सभी को याद होगा। इस सरकार में भी नेताजी मैडम के दूत बनकर जगह जगह सोनिया गान करते घूम रहे है। मणिशंकर का चरित्र एक ऐसे राष्ट्रद्रोही का रहा है,जिसको कभी छमा नही किया जा सकता। १९६२ में जिस समय चीन ने भारत पर आक्रमण किया था,उस समय ये नेता लन्दन में पढ़ाई कर रहा था। पूरा का पूरा देश इस आक्रमण से शोकग्रस्त था। गाँव गाँव व नगर नगर से भारतीय सैनिको के लिए धन एकत्र किया जा रहा था।माता व बहनों ने अपने हाथों के जेवर व मंगलसूत्र तक भारतीय सेना के लिए दे दिए थे। सारा देश रो रहा था। परंतु लन्दन में ये देशद्रोही कुछ और ही खेल खेल रहा था। अय्यर व इसके साथी भी सैनिको के लिए चंदा एकत्र कर रहे थे किंतु वो जो धन एकत्र कर रहा था,वो भारतीय सैनिको के लिए नही बल्कि लाल सेना (चीनी सेना) के लिए धन एकत्र कर रहा था। उसकी इस बात का नेहरू को भी पता था।क्यो कि जिस समय अय्यर का चयन इंडियन फ़ौरन सर्विस में हुआ था, तो देश की सबसे बड़ी जासूसी संस्था ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा,तथा उपरोक्त बात का हवाला देते हुए उसके चयन पर रोक लगाने को

आप सभी को नववर्ष विक्रमी संवत २०६७ की हार्दिक शुभकामनाएं

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मित्रों जब अब से एक वर्ष पूर्व मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था ,तब सबसे प्रथम सम्राट विक्र्मद्वित्तीय के ऊपर दो लेख लिखे थे। विक्रमी संवत २०६६ समाप्त हो रहा है। संवत २०६७ का आरम्भ होने जा रहा है। भारतीय नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मै विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्र्माद्वितीय को नमन करते हुए वे दोनों लेख आपको दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ। विश्व विजेता सम्राट विक्रमादित्य ईसा से कई शताब्दी पूर्व भारत भूमि पर एक साम्रराज्य था मालव गण। मालव गण की राजधानी थी भारत की प्रसिद्ध नगरी उज्जेन । उज्जैन एक प्राचीन गणतंत्र राज्य था । प्रजावात्सल्या राजा नाबोवाहन की म्रत्यु के पश्चात उनके पुत्र गंधर्वसेन ने "महाराजाधिराज मालवाधिपति महेंद्राद्वित्तीय "की उपाधि धारण करके मालव गण को राजतन्त्र में बदल दिया । उस समय भारत में चार शक शासको का राज्य था। शक राजाओं के भ्रष्ट आचरणों की चर्चाएँ सुनकर गंधर्वसेन भी कामुक व निरंकुश हो गया। एकं बार मालव गण की राजधानी में एक जैन साध्वी पधारी।उनके रूप की सुन्दरता की चर्चा के कारण गंधर्व सेन भी उनके दर्शन करने पहुच गया । साध्वी के रूप ने उन्हें का

क्या भारत में ऐसा संभव है.

९\११ के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने सूझ-बूझ और साहसयुक्त कदम उठाया है,वैसा ही साहसी कदम उठाना अब भारत के लिए भी आवश्यक हो गया है. यह कहना है एक सेवा-निर्वत्त मुस्लिम सेनाधिकारी का. उनके कथानुसार अमेरिका ने इस हमले के बाद से ही मस्जिदों के इमामों को उनके इलाके में रहने वाले मुस्लिमों की गैर कानूनी गतिविधियों का जिम्मेवार निश्चित किया है,क्योकि प्रत्येक मुस्लिम किसी न किसी मस्जिद से जुड़ा होता है. इस नियम के अंतर्गत अब तक २०० से ज्यादा इमामों को उनके इलाके में संदिग्ध घटनाओं के कारण अमेरिका से बाहर निकाला जा चुका है. इसलिए अमेरिका में उसके बाद आतंकी घटनाओं की पुनरावृति नहीं हुई है. उस देशभक्त अधिकारी का सुझाव है की भारत सरकार को भी सभी मस्जिदों के प्रमुखों को उनसे सम्बंधित नागरिकों की गतिविधियों का जिमेदार मानना चाहिए. क्योकि उन्हें अपने इलाके में रहने वाले सभी नागरिकों की जानकारी होती है. वे कहते है की जिस दिन पाकिस्तानी आतकवादियों को भारतीय समर्थक मिलने बंद हो जायेंगे ,उसी दिन से भारत में आतंकवाद दम तोड़ने लगेगा . देश की सुरक्छा के लिए ऐसी इच्छा शक्ति आवश्यक है . लेकिन क्या भारत में ऐसा