पाँव में चुभने लगे .
देश पर चर्चा चली तो,प्रश्न भी उठने लगे। शर्म से चेहरे हमारे,बेतरह झुकने लगे॥ १ आँधियों के पाँव में तो,बेडियाँ डाली नही। दीपकों से रोशनी के,वायदे करने लगे॥२ होंसले लेकर चले थे,रहबरों के साथ हम। वे रास्ते ही रहबरों के पाँव में चुभने लगे॥ ३ जब उजालों से रही,पहचान न बिल्कुल कोई। जुगनुओं की रौशनी को,रौशनी कहने लगे॥४ तारीख लिखेगी तुम्हारे कर्म की हर दास्ताँ। सर कटाकर किस तरह, मगरूर तुम रहने लगे॥५ की है तरक्की आदमी ने इस कदर, है अब तलक। लड़ते थे जो कि पत्थरों से ,बारूद से लड़ने लगे॥६ रचनाकार --- मेरे पिता श्री देवेन्द्र सिंह त्यागी