पर्वत को हिलाने वाले देवदूत
मुझे पढ़ने का बहुत शौक है किन्तु मै हैरान हूँ कि मेने आज तक दशरथ मांझी जैसे देव पुरुष को कभी नहीं पढ़ा। दशरथ मांझी ने अपने जीवन के दो दशक हथौड़ी और छेनी से पहाड़ काटकर रास्ता बनाने में व्यतीत कर दिए। उनका जीवन संघर्ष, त्याग, प्रेम और परोपकार का प्रतीक है। यह सच्ची कहानी है दशरथ मांझी नाम के एक गरीब आदमी की। दशरथ मांझी का जन्म १९३४ में बिहार के गेलहर गॉंव में एक बहुत गरीब परिवार में हुआ। वे बिहार के आदिवासी जनजाति में के बहुत निम्न स्तरीय मुसाहर जनजाति से थे। उनकी पत्नी का नाम फाल्गुनी देवी था। दशरथ मांझी के लिए पीने का पानी ले जाते फाल्गुनी देवी दुर्घटना की शिकार हुई। उन्हें तत्काल डॉक्टरी सहायता नहीं मिल पाई। शहर उनके गॉंव से ७० किलोमीटर दूर था। लेकिन वहॉं तक तुरंत पहुँचना संभव नहीं था। दुर्भाग्य से वैद्यकीय उपचार के अभाव में फाल्गुनी देवी की मौत हो गई। ऐसा प्रसंग किसी और पर न गुजरे, इस विचार ने दशरथमांझी को वो प्रेरणा दी जिसकी मिसाल आम आादमी के तो बस की बात नही थी। समीप के शहर की ७० किलोमीटर की दूरी कैसे...