अगर मुस्लिम जनसंख्या का बढ़ता घनत्व न रुका तो फिर होंगी सीधी कार्यवाहियाँ
अभी हाल ही में आरएसएस के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा कि 2011 की जनगणना के धार्मिक आंकड़ों ने जनसंख्या नीति की समीक्षा को जरूरी बना दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है, "1951 से 2011 के बीच मूल भारतीय धर्मों से संबंध रखने वाले लोगों की जनसंख्या 88 प्रतिशत से घटकर 83.5 प्रतिशत रह गई है जबकि मुस्लिम आबादी 9.8 फ़ीसदी से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गई है."प्रस्ताव में साथ ही कहा गया है कि 'सीमावर्ती राज्यों असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है जो इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश की तरफ घुसपैठ जारी है."पूर्वोत्तर राज्यों में जनसंख्या के ‘‘धार्मिक असंतुलन’’ को गंभीर करार देते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि 1951 में अरुणाचल प्रदेश में भारतीय मूल के लोग 99.21 फ़ीसदी थे लेकिन 2011 में उनकी आबादी घटकर 67 फ़ीसदी रह गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन पिछले कई वर्षों से ऐसी ही मांग करते आ रहे हैं । शायद इन हिन्दू संगठनों की मेहनत का नतीजा है कि आज आर एस एस को भी इस बात को बोलने पर मजबूर होना