इतिहास बदलना होगा.

अंधियारे से घिरा हुआ अब यह आकाश बदलना होगा।
पीड़ित मानव के मन का अब हर संत्रास बदलना होगा।।
आज देश की सीमाओं के चंहु और तक्षक बैठे हैं ।
खंड-खंड करके खाने को इस भू के भक्षक बैठें हैं।।
जिन कन्धों पर आज देश का भार सोंप निश्चिंत हुए हो।
वे महलों में बनकर अपनी सत्ता के रक्षक बैठे हैं॥
इन्हे जगा दो या कहदो दिल्ली की गद्दी त्यागें।
किसी शिवा को लाकर के अब यह इतिहास बदलना होगा॥
अंधियारे से ...............................................................१ ।
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कण कण की हरियाली देखो धीरे धीरे पीत हो रही।
जन जन के मन की उजयाली तम से है भयभीत हो रही ॥
राम - कृषण - गौतम -राणा की इस पावन धरती पर देखो।
छल-असत्य और पाप के सन्दर्भों की जीत हो रही॥
इस धरती के उजियाले पर अंधकार छाने से पहले।
जन-जन के मन में आ बैठा, हर संत्रास बदलना होगा॥
अंधियारे से घिरा ......................................................५
रचनाकार--shree देवेन्द्र सिंह त्यागी।

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