रानी पद्यमिनी का जोहर, विश्व इतिहास की सबसे वीरोचित व अदभुत घटना
जब गोरा और बादल जैसे वीर राजपूत अपने प्राणों की आहुति देकर अलाउद्दीन खिलजी जैसे नरपिशाच के जबड़े से चित्तोड़ के राणा भीम सिंह(इतिहास में कई स्थान पर राणा भीम सिंह के नाम के स्थान पर राणा रतन सिंह भी लिखा है। )को निकाल ले गए,तब अलाउद्दीन गुस्से से पागल हो गया। उसने निरीह हिंदू जनता का कत्लेआम शुरू कर दिया, आस पास के गावों की हजारों हिंदू स्त्रियों के शीलभंग होने लगे । चित्तोड़ के दुर्ग के अन्दर इसका प्रतिशोध लेने की तैयारी शुरू हो गई। १० वर्ष के बालक से ८० वर्ष तक के वृद्ध हिंदू वीरों ने सर पर केसरिया बाना बाँध लिया। लगभग ५००० हिंदू वीर १००००० इस्लामिक दानवों से टकराने को तैयार हो गए।
अब अन्तिम विदाई का समय आ गया था। सभी को पता था की युद्ध छेत्र में क्या होने वाला है। दुर्ग के भीतर रानी पद्यमिनी व अन्य हिंदू वीरांगनाओं ने भी इस यज्य में अपने प्राणों की आहुति देने की तैयारी कर ली थी। कोई भी स्त्री इस्लामिक दानवों के हाथ में नही पड़ना चाहती थी।
अब विश्व इतिहास की वो वीरोचित घटना घटने वाली थी जिसे पड़ने व सुनने से प्रय्तेक हिंदू का सर गर्व से उठ जाता है और आँखे नम हो जाती है। दुर्ग के मध्य में एक बहुत बड़ा गड्ढा खोद कर एक हवन कुण्ड बनाया गया। सर्व प्रथम बहनों ने भाइयों को राखी बंधी और उस हवन कुण्ड में प्रवेश किया। उसके पश्चात् पिताओं ने अपनी छोटी-छोटी लड़किओं व लड़कों की अपने हाथों से उस हवन में आहुति दी।सबसे बाद में रानी पद्यमिनी ने हिंदू वीरांगनाओं के साथ अपने अपने पतियों के तिलक किए और जय हर के उद्दघोशो के साथ पवित्र अग्नि में प्रवेश कर लिया। यही इतिहासिक घटना रानी पद्यमिनी के जोहर की घटना है।
जय हर के घोशों से दुर्ग के बहार इस्लामिक दानव दहल उठे थे। दुर्ग के द्वार खुले और ५००० अलबेले हिंदू वीर यज्य की अन्तिम आहुति में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए अलाउद्दीन की १००००० की सेना पर टूट पड़े। राणा भीम सिंह के साथ सभी हिंदू वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन की सेना के लगभग १२००० दानवों को जहन्नुम पहुँचा दिया गया।
रानी पद्यमिनी के जोहर की घटना विश्व इतिहास की सबसे वीरोचित व एक अदभुत घटना है। ऐसी वीरांगनाओं के बलिदान को हर हिंदू को नमन करना चाहिए।
अब अन्तिम विदाई का समय आ गया था। सभी को पता था की युद्ध छेत्र में क्या होने वाला है। दुर्ग के भीतर रानी पद्यमिनी व अन्य हिंदू वीरांगनाओं ने भी इस यज्य में अपने प्राणों की आहुति देने की तैयारी कर ली थी। कोई भी स्त्री इस्लामिक दानवों के हाथ में नही पड़ना चाहती थी।
अब विश्व इतिहास की वो वीरोचित घटना घटने वाली थी जिसे पड़ने व सुनने से प्रय्तेक हिंदू का सर गर्व से उठ जाता है और आँखे नम हो जाती है। दुर्ग के मध्य में एक बहुत बड़ा गड्ढा खोद कर एक हवन कुण्ड बनाया गया। सर्व प्रथम बहनों ने भाइयों को राखी बंधी और उस हवन कुण्ड में प्रवेश किया। उसके पश्चात् पिताओं ने अपनी छोटी-छोटी लड़किओं व लड़कों की अपने हाथों से उस हवन में आहुति दी।सबसे बाद में रानी पद्यमिनी ने हिंदू वीरांगनाओं के साथ अपने अपने पतियों के तिलक किए और जय हर के उद्दघोशो के साथ पवित्र अग्नि में प्रवेश कर लिया। यही इतिहासिक घटना रानी पद्यमिनी के जोहर की घटना है।
जय हर के घोशों से दुर्ग के बहार इस्लामिक दानव दहल उठे थे। दुर्ग के द्वार खुले और ५००० अलबेले हिंदू वीर यज्य की अन्तिम आहुति में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए अलाउद्दीन की १००००० की सेना पर टूट पड़े। राणा भीम सिंह के साथ सभी हिंदू वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन की सेना के लगभग १२००० दानवों को जहन्नुम पहुँचा दिया गया।
रानी पद्यमिनी के जोहर की घटना विश्व इतिहास की सबसे वीरोचित व एक अदभुत घटना है। ऐसी वीरांगनाओं के बलिदान को हर हिंदू को नमन करना चाहिए।
जैसा की इतिहास कहता है ..
जवाब देंहटाएंचित्तोड़ के तीन जौहर .उनमें से एक ये भी रहा है
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इसकी याद से हर किसी की आँखें नम और लहू उबलने लगता है
अफसोश आज हम अपने इतिहास से ही दूर चले गए है
naveen ji aapke lekh rongte kadhe kar dete hay.
जवाब देंहटाएंऐसे ही लिखते रहें |आप का बहुत धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंjohar ke bareme bahut achha likha hai. dhanyavad
जवाब देंहटाएंजोहर पहली बार राजा दाहिर की पत्नी द्वारा अरबो के आक्रमण के समय ७१२ में किया गया था
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