लेके बगावत आग की.

बर्फ के पन्नो पे लिखकर,इक इबारत आग की। फ़िर रहा करता शहर में, मै तिजारत आग की। बर्फ से गलते शहर में , ढूँढ़ते जो आशियाँ। बांटता मै फ़िर रहा,उनको इमारत आग की। बारूद पर बैठा हुआ मै ,लिख रहा तहरीर हूँ। ले जाए जिसको चाहिए,जितनी जरूरत आग की। है वतन के वास्ते, जिनके दिलों में जलजला । सिखला रहा करना उन्हें ही,मै इबादत आग की। कब जरुरत आ पड़े ,फिरसे वतन की कोम को, भरके गजल में कर रहा हूँ ,में हिफाजत आग की. लिखने गजल को जब उठाता,मै कलम को हाथ में। लगती उगलने आंच ये,लेके बगावत आग की।