ग़ज़वा-ए-हिन्द यानी भारत को जीतने का पुराना स्वप्न, कुत्सित आँखों की विभिन्न चरणों की योजना सदियों से चल रही है। ख़ासी सफल भी हुई है। वृहत्तर भारत की बहुत सारी धरती भारत से अलग की जा चुकी है। आपसे, इसी के एक चरण अर्थात बांग्ला देश को विराट भारत से अलग करने के षड्यंत्र के बारे में पिछले अंक में चर्चा हो चुकी है। उसी षड्यंत्र के एक और भाग म्यांमार की बातचीत आज करना चाहता हूँ। मूर्ति पूजक, प्रकृति पूजक, बौद्ध तंत्र तथा बुद्ध धर्म की महायान शाखा को मानने वाला म्यांमार या बर्मा भारत, थाईलैंड, लाओस, बांग्लादेश और चीन से घिरा हुआ देश है। इसका आकार 6,76,578 वर्ग किलोमीटर का है। इसकी धरती रत्नगर्भा है। माणिक, जेड जैसे कीमती जवाहरात, तेल, प्राकृतिक गैस और अन्य खनिज संसाधनों से समृद्ध यह देश बहुत समय से उथलपुथल से भरा हुआ है। यहाँ सैन्य शासन लगातार उपस्थिति बनाये हुए है। सैन्य शासन समाप्त होने के बाद भी राजनैतिक दल सैन्य अधिकारियों से भरे हुए हैं। बर्मा में भी मुस्लिम धर्मांतरण के साथ संसार के अन्य सभी देशों में होने वाली उथल-पुथल शुरू से है। सभी अमुस्लिम देशों जिनमें इस्लाम का प्रवेश हो ग
अभी हाल ही में आरएसएस के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा कि 2011 की जनगणना के धार्मिक आंकड़ों ने जनसंख्या नीति की समीक्षा को जरूरी बना दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है, "1951 से 2011 के बीच मूल भारतीय धर्मों से संबंध रखने वाले लोगों की जनसंख्या 88 प्रतिशत से घटकर 83.5 प्रतिशत रह गई है जबकि मुस्लिम आबादी 9.8 फ़ीसदी से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गई है."प्रस्ताव में साथ ही कहा गया है कि 'सीमावर्ती राज्यों असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है जो इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश की तरफ घुसपैठ जारी है."पूर्वोत्तर राज्यों में जनसंख्या के ‘‘धार्मिक असंतुलन’’ को गंभीर करार देते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि 1951 में अरुणाचल प्रदेश में भारतीय मूल के लोग 99.21 फ़ीसदी थे लेकिन 2011 में उनकी आबादी घटकर 67 फ़ीसदी रह गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन पिछले कई वर्षों से ऐसी ही मांग करते आ रहे हैं । शायद इन हिन्दू संगठनों की मेहनत का नतीजा है कि आज आर एस एस को भी इस बात को बोलने पर मजबूर होना