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पिशाचों से बचालो देश को

तुम सो रहे हो नोजवानो देश बिकता है, तुम्हारी संस्कृति का है खुला परिवेश बिकता है। सिंहासनों के लोभियों के हाथ में पड़कर , तुम्हारे देश के इतिहास का अवशेष बिकता है । पिशाचों से बचालो देश को, अभिमान ये होगा, तुम्हारा राष्ट्र को अर्पित किया सम्मान ये होगा। ये आतंकियों को यूँ यदि सर पे चढायेंगे, हमलावरों को राष्ट्र के बेटे बताएँगे, जगह जिनकी है केवल जेल में, उन्ही दरिंदों को, लहू जो स्वार्थ में,इस देश का इनको पिलायेंगे। सपूतों के बहाए रक्त का अपमान ये होगा, शहीदों का हुआ सब व्यर्थ ही बलिदान ये होगा। पिशाचों से बचालो ....................... ये आतंकी इरादों को नजरअंदाज करते है, जिहादी युद्ध को कुछ सिरफिरों का खेल कहते है, वतन, आतंकियों की चाह के माकूल करके ये, महज सत्ता की खातिर देश को गुमराह करतेहैं। यही होता रहा तो देश अब शमसान ये होगा, chamakte सूर्य से इस देश का अवसान ये होगा। पिशाचों से .................................................... चलो इस देश का नवजागरण तुमको बुलाता है। समर का तुमको आमंत्रण , वह तुमको बुलाता है। चलो आलोक लेकर के अँधेरा काट दे इसका, है तुमपे देश का जो ऋण , वह

गीता के काव्य अनुवाद का कुछ अंश

गीता काव्य-पीयूष - (श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दी भाषा-काव्यानुवाद से उद्धृत) स्वतः प्राप्त हे पार्थ ! खुले यह, स्वर्ग-द्वार के जैसा। भाग्यवान क्षत्री ही करते, युद्ध प्राप्त हैं ऐसा।। नष्ट हुए कुल-धर्म मनुज का, वास अनिश्चित पल तक। हे जनार्दन! सुना गया है, सदा नर्क में अब तक।।१/४४।। इस देही को शैशव , यौवन , जरा यथा है आता। है अन्य देह भी वैसे, मोहित, विज्ञ नही हो जाता।।२/१३।। विज्ञ-अरि इस तृप्ति-हीन,इस काम-अनल के द्वारा। हे कौन्तेय ! सब ज्ञान मनुज का, ढका हुआ है सारा।।३/३९।। अधर्म - वृद्दि और नाश धर्मं का , जब-जब भारत होता। स्वयं जन्म मैं इस धरती पर, तब-तब आकर लेता।।४/७।। करने दुष्टों का नाश और , भक्तो की रक्षा हित में। युग-युग में लेता जन्म, धर्म को करने स्थापित मैं।।४/८।। ब्रह्म-समर्पित कर कर्मों को, संग-रहित करता जो। जल से पद्य्न-पत्र-सम अघ में, लिप्त नहीं होता वो।।५/१०।। चंचल, प्रमथनशील और, अत्यंत बलि ये मन है। वायु-सम ही इसे रोकना, मधुसूदन ! अति कठिन है।।६/३४।। चार तरह के पूत मनुज हैं, करते मेरा अर्चन। हे भरत ! आर्त-जिज्ञासु-अर्थी, और महाज्ञानी जन।।७/१६।। जिस समय प्राप्त होते मृत योगी, अ

दिल्ली सल्तनत इतिहास के दो सुनहरे वर्ष

अलाउद्दीन की हत्या के बाद उसका पुत्र मुबारक अपने सभी विरोधिओं कोकत्ल करने के बाद दिल्ली का सुलतान बन बैठा । उसकी इस कार्य में सबसे अधिक सहायता उसके सेनापति खुसरुखान ने की। खुसरुखान एक हिंदू गुलाम था। १२९७ में मालिक काफूर ने जब गुजरात पर आक्रमण किया था,तब एक सुंदर व तेजस्वी लड़का गुलाम के रूप में पकड़ा गया। जो अल्लाउद्दीन को सोंप दिया गया। उस हिंदू लड़के को इस्लाम में दिक्षितकिया गया तथा उसका नाम हसन रखा गया। धीरे धीरे हसन एक वीर योद्धा बनता चला गया। मुबारक के सुलतान बनने पर वह खुसरुखान के नाम से उसका सेनापति बना। गुजरात के राजा की पुत्री देवल देवी को भी मालिक काफूर युद्ध में उठा लाया था, और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र्खान से जबर दस्ती उसका निकाह पडवा दिया। गुर्जर वंश की यह राजकन्या खिज्र्खान की हत्या के बाद सुलतान मुबारक के हट लग गई,और मुबारक ने उससे निकाह कर लिया। हिंदू बालक से हसन व हसन से खुसरुखान बने युवक के दिल में अपने पुराने धर्म व अपने राष्ट्र के लिए अपार प्रेम जाग्रत था। इसी ज्वाला में हिंदू गुर्जर राजकन्या देवल देवी भी धधक रही थी । इसी कारण खुसरुखान ने एक दूरगामी योजना बना डाली

रानी पद्यमिनी का जोहर, विश्व इतिहास की सबसे वीरोचित व अदभुत घटना

जब गोरा और बादल जैसे वीर राजपूत अपने प्राणों की आहुति देकर अलाउद्दीन खिलजी जैसे नरपिशाच के जबड़े से चित्तोड़ के राणा भीम सिंह(इतिहास में कई स्थान पर राणा भीम सिंह के नाम के स्थान पर राणा रतन सिंह भी लिखा है। )को निकाल ले गए,तब अलाउद्दीन गुस्से से पागल हो गया। उसने निरीह हिंदू जनता का कत्लेआम शुरू कर दिया, आस पास के गावों की हजारों हिंदू स्त्रियों के शीलभंग होने लगे । चित्तोड़ के दुर्ग के अन्दर इसका प्रतिशोध लेने की तैयारी शुरू हो गई। १० वर्ष के बालक से ८० वर्ष तक के वृद्ध हिंदू वीरों ने सर पर केसरिया बाना बाँध लिया। लगभग ५००० हिंदू वीर १००००० इस्लामिक दानवों से टकराने को तैयार हो गए। अब अन्तिम विदाई का समय आ गया था। सभी को पता था की युद्ध छेत्र में क्या होने वाला है। दुर्ग के भीतर रानी पद्यमिनी व अन्य हिंदू वीरांगनाओं ने भी इस यज्य में अपने प्राणों की आहुति देने की तैयारी कर ली थी। कोई भी स्त्री इस्लामिक दानवों के हाथ में नही पड़ना चाहती थी। अब विश्व इतिहास की वो वीरोचित घटना घटने वाली थी जिसे पड़ने व सुनने से प्रय्तेक हिंदू का सर गर्व से उठ जाता है और आँखे नम हो जाती है। दुर्ग के मध्य

विश्व इतिहास की सबसे साहसिक घटनाओं में से एक

दिल्ली के नरपिशाच बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तोड़ की महारानी पद्यमिनी के रूप की चर्चा सुनी ,तो वह रानी को पाने के लिए आतुर हो बैठा । उसने राणा भीम सिंह को संदेश भेजा की वह रानी पद्यमिनी को उसको सोंप दे वरना वह चित्तोड़ की ईंट से ईंट बजा देगा। अलाउद्दीन की धमकी सुनकर राणा भीम सिंह ने भी उस नरपिशाच को जवाब दिया की वह उस दुष्ट से रणभूमि में बात करेंगे। कामपिपासु अलाउद्दीन ने महारानी को अपने हरम में डालने के लिए सन १३०३ में चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीरो ने उसका स्वागत अपने हथियारों से किया। राजपूतों ने इस्लामिक नरपिशाचों की उतम सेना वाहिनी को मूली गाजर की तरह काट डाला। एक महीने चले युद्ध के पश्चात् अलाउद्दीन को दिल्ली वापस भागना पड़ा। चित्तोड़ की तरफ़ से उसके होसले पस्त हो गए थे। परन्तु वह महारानी को भूला नही था।कुछ समय बाद वह पहले से भी बड़ी सेना लेकर चित्तोड़ पहुँच गया। चित्तोड़ के 10000 सैनिको के लिए इस बार वह लगभग १००००० की सेना लेकर पहुँचा। परंतु उसकी हिम्मत चित्तोड़ पर सीधे सीधे आक्रमण की नही हुई। उस पिशाच ने आस पास के गाँवो में आग लगवा दी,हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर द

गाँधी परिवार अथवा खान परिवार

गाँधी परिवार का परिचय जब भी किसी कांग्रेसी अथवा मीडिया द्वारा देशवासियों को दिया गया है अथवा दिया जाता है,तब वह फिरोज गाँधी तक जाकर ही यकायक रुक सा जाता है फिर बड़ी सफाई के साथ अचानक उस परिचय का हैंडिल एक विपरीत रास्ते की और घुमाकर नेहरु वंश की और मोड़ दिया जाता है। फिरोज गाँधी भी अंततः किसी के पुत्र तो होंगे ही। उनके पिता कौन थे ? यह बतलाना आवश्यक नहीं समझा जाता। फिरोज गाँधी का परिचय पितृ पक्ष से काट कर क्यों ननिहाल के परिवार से बार-बार जोड़ा जाता रहा है, यह एक ऐसा रहस्य है जिसे नेहरु परिवार के आभा-मंडल से ढक कर एक गहरे गढे में मानो सदैव के लिए ही दफ़न कर दिया गया है।यह कैसा आश्चर्य है की पंथ निरपेक्षता(मुस्लिम प्रेम) की अलअम्बरदार कांग्रेस के द्वारा भी आखिर यह गर्वपूर्वक क्यों नहीं बतलाया जाता की फिरोज गाँधी एक पारसी युवक नहीं अपितु एक मुस्लिम पिता के पुत्र थे। और फिरोज गाँधी का मूल नाम फिरोज गाँधी नहीं फिरोज खान था जिसको एक सोची समझी कूटनीति के अर्न्तगत फिरोज गाँधी करा दिया गया था।फिरोज गाँधी मुसलमान थे और जीवन पर्यन्त मुसलमान ही बने रहे। उनके पिता का नाम नवाब खान था जो इलाहबाद में

भारत के महान नेताओं की नजरों में इस्लाम

इस्लाम के सम्बन्ध में भारतवर्ष की कई महान विभुतियों ने समय समय पर हिंदू समाज को चेताया है................ लाला लाजपत राय.----- लालाजी ने श्री सी० आर० दास को १९२४ में लिखे एक पत्र में लिखा की, मैंने पिछले ६ मास् के दोरान अपना अधिकांश समय मुस्लिम कानून व मुस्लिम इतिहास के अध्यन में लगाया है। मै यह सोचने लगा हूँ कि, हिंदू -मुस्लिम एकता न तो सम्भव है और न ही व्यावहारिक। ...................... मै मुसलमानों पर विश्वास करने को तैयार हूँ,किन्तु कुरान औ़रहदीस के उन आदेशों का क्या होगा?मुस्लमान उनकी अवज्ञा नही कर सकते। रविन्द्र नाथ टैगोर ------ टैगोर जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के बारे में कहा है की, "हिंदू मुस्लिम एकता को लगभग एकदम असंभव बनाने वाली एक और महत्वपूर्ण वजह है की मुस्लमान अपनी देशभक्ति को एक देश तक सीमित नही रख सकते। ................मोहम्मद अली जोहर जैसे व्यक्तियों ने यह घोषित किया है कि, किसी भी हालत में किसी भी देश के मुस्लमान के खिलाफ खड़े होने की अनुमति नही है। " डॉक्टर अम्बेडकर ------------ "तमाम मान्यताओं के बाद इस्लाम की जिस बात पर ध्यान देना चाहिए , वह यह है कि