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मै राष्ट्र -यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया.

अपना शौर्य तेज भुला यह देश हुआ क्षत- क्षत है। यह धरा आज अपने ही मानस -पुत्रों से आहत है। अब मात्र उबलता लहू समय का मूल्य चुका सकता है। तब एक अकेला भारत जग का शीश झुका सकता है। एक किरण ही खाती सारे अंधकार के दल को। एक सिंह कर देता निर्बल पशुओं के सब बल को। एक शून्य जुड़कर संख्या को लाख बना देता है। अंगार एक ही सारे वन को राख बना देता है। मै आया हूँ गीत सुनाने नही राष्ट्र-पीड़ा के। मै केवल वह आग लहू में आज नापने आया मै राष्ट्र-यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया ।।१ नही महकती गंध केशरी कश्मीरी उपवन में। बारूदों की गंध फैलती जाती है आँगन में। मलयाचल की वायु में है गंध विषैली तिरती। सम्पूर्ण राष्ट्र के परिवेश पर लेख विषैले लिखती। स्वेत बर्फ की चादर गिरी के तन पर आग बनी है। आज धरा की हरियाली की पीड़ा हुई घनी है। पर सत्ता के मद में अंधे धरती के घावों से। अंजान बने फिरते है बढ़ते ज्वाला के लावों से। शक्ति के नव बीज खोंजता इसीलिए ही अब मैं। मै महाकाल का मन्त्र फूंकता तुम्हे साधने आया मै राष्ट्र यज्य के लिए ....................................२ उठ रहा आज जो भीषण -रव यह एक जेहादी स्वर है। एक

भारतीय संस्कृति के आधार यज्य को अपपतन करने की वामपंथी मानसिकता.

हमारे भारतीय ग्रंथों व गौरवशाली इतिहास को गोरे अंग्रेजो ने बदनाम करने में कोई कसर नही छोडीहै, वहीं आज काले अंग्रेज (अंग्रेजी की गुलाम मानसिकता वाले भारतीय) भी भारतीयता को बादनाम करने पर तुले है।मैंने वेदों के बारे में अपने पहले लेख मे बताया था कि किस प्रकार नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में वेदों को जंगली लोगो के जंगली गीत बताया था। आज उसी कड़ी मे मै आपको एक कम्युनिस्ट नेता अमृत पाद डांगे के लिखे एक ग्रन्थ के बारे में बताऊंगा । डांगे ने भारतीय संस्कृति पर एक पुस्तक लिखी है.उस पुस्तक मे उसने ऋग्वेदीय काल की चर्चा करते हुए यज्य के बारे में लिखा है," यज्य नाम के सामूहिक महोत्सव के प्रसंग पर खूब मांस खाकर एवं खूब मदिरा पीकर वे पुरातन कालीन लोग अग्नि के चारों ओर सो जाते थे अथवा अपनी चुनी संगिनी सहित झोपडी में विहार के लिए चले जाते थे।" अब वेदों में यज्य के बारे मे क्या लिखा है मै आपको बताता हूँ। ऋग्वेद के प्रथम मंडल मे ही ३६ वें वर्ग के मन्त्र ५ में बताया गया है कि ,"जो यज्य धूम से शोधे हुए पवन हैं,वे अच्छे राज्य के कराने वाले होकर रोग आदि दोषों का नाश करते है

संसद चालीसा

संसद से सीधा प्रसारण-संसद चालीसा देशवासियों सुनो झलकियाँ मै तुमको दिखलाता। राष्ट्र- अस्मिता के स्थल से सीधे ही बतियाता। चारदीवारी की खिड़की सब लो मै खोल रहा हूँ। सुनो देश के बन्दों मै संसद से बोल रहा हूँ।१। रंगमंच संसद है नेता अभिनेता बने हुए हैं। जन- सेवा अभिनय के रंग में सारे सने हुए हैं। पॉँच वर्ष तक इस नाटक का होगा अभिनय जारी। किस तरह लोग वोटों में बदलें होगी अब तैयारी।२। चुनाव छेत्र में गाली जिनको मुहं भर ये देते थे। जनता से जिनको सदा सजग ये रहने को कहते थे। क्या-क्या तिकड़म करके सबने सांसद- पद जीते है। बाँट परस्पर अब सत्ता का मिलकर रस पीते हैं।३। जो धर्म आज तक मानवता का आया पाठ पढाता। सर्वधर्म-समभाव-प्रेम से हर पल जिसका नाता। वोटों की वृद्धि से कुछ न सरोकार उसका है। इसीलिए संसद में होता तिरस्कार उसका है।४। दो पक्षो के बीच राष्ट्र की धज्जी उड़ती जाती। राष्ट्र-अस्मिता संसद में है खड़ी-खड़ी सिस्काती। पल-पल, क्षन-क्षन उसका ही तो यहाँ मरण होता है। द्रुपद सुता का बार-बार यहाँ चीर-हरण होता है।५। आतंकवाद और छदम युद्ध का है जो पालनहारा। साझे में आतंकवाद का होगा अब निबटारा। आतंक मिटाने

ऋग्वेद में विमान की चर्चा.

नेहरू ने अपनी पुस्तक " डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया "में विश्व में सबसे बढे ज्ञान के स्रोत वेदों के बारे में लिखा है कि "भारत में ३००० वर्ष पूर्व जंगली मनुष्य जब भेढ़ बकरी चराया करते थे तो अपना समय काटने के लिए जो गीत गाया करते थे वे ही वेद् है।"आज नेहरू अगर जिन्दा होता तो मै उससे अवश्य पूछता कि क्या उसने कभी वेदों की प्रतियों को देखा है पढने की बात तो बहुत दूर की है। अधिकतर भारतीय लेखक भी वेदों को बिना पढ़े उनको असभ्य संस्कृति के लोगो द्वारा रचित बताते है। जबकि वेदों के ज्ञान के बारे में बिल्कुल इसका उल्टा है।प्रथ्वी पर ऐसा कोई ज्ञान ,विज्ञानं नही है जिसकी जानकारी वेदों में न हो।वेदों के बारे में अपने इस लेख में में आपको बताऊंगा कि आज जो हवाई जहाज हवा में उड़ रहे है ,ऋग्वेद में उसकी जानकारी दी हुई है। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के श्लोक ७-- आ नो नावा मतीनां यातंपारे गन्तवे। युन्जाथाम्शिव्ना रथं॥ जिसका अर्थ है कि,"मनुष्यों को चाहिए कि वो रथ से स्थल,नाव से जल में तथा विमान से आकाश में आया जाया करें।" उसके पश्चात श्लोक ८ में बताया गया है कि," कोई भी मनुष्य अग्नि,जल आद

दोहो की धारा

रखवाला तो सो रहा ,क्या होगा अब हाल। लोकतंत्र के खेत में, घुस आए स्रंगाल ॥ १ ॥ दिल्ली की ही भूल के, भोगे हैं संत्रास । दिल्ली फ़िर दोहरा रही पुनः वही इतिहास ॥ 2 ॥ दिया पंथनिरपेक्षता , को इतना सम्मान। बहुसंख्यक की आस्था, कर दी लहूलुहान ॥ ३ ॥ हुए अचानक देश में,आतंकी विस्फोट। लगी होड़ नेताओं में,कोन बटोरे वोट ॥ ४ ॥ बेटो को ही राज का,देकर उतराधिकार । नेता पैनी कर रहे, लोकतंत्र की धार ॥ ५ ॥ कैसे लिक्खे लेखनी, अब फूलों के छंद। उपवन में है फैलती,बारूदी दुर्गंध ॥ ६॥ नई आर्थिक नीतियो , का करती उपहास। सड़क किनारे पड़ी हुई, भूखी -नंगी लाश ॥ ७ ॥ प्रातः आँगन में गिरे, आकर जब अखबार। करने लगता तेज फ़िर,में चाकू की धार ॥ ८ ॥ पुन्य से अब पाप का, छिड़ने दो संग्राम। धरती को शायद मिले, फ़िर से कोई राम॥ रचनाकार--मेरे पिता श्री देवेन्द्र सिंह त्यागी

अफजल तो फ़िर भी बच गया.

मै अपने कुछ मित्रो के साथ मेरठ से दिल्ली जा रहा था। रास्ते में समय काटने के लिए कुछ बातचीत का दौर चल पडा , तो यात्रा में केन्द्रीय सरकार के कार्यो की मीमांसा शुरू हो गई। बात शुरू हुई अफजल की,क्योकि हमने भी अफजल गुरु की फांसी के लिए कई प्रदर्शन किए थे। खूब जुलुस निकाले और खूब गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाये भी कि अफजल को फांसी दो,फांसी दो। हुआ कुछ नही तो एक भड़ास थी मन में, निकालनी शुरू कर दी। हमने बात को आगे बढाते हुए कहा कि,कितने साल हो गए लेकिन सरकार अफजल को फांसी नही दे रही है और अब तो सरकार ने हद कर दी है कि केन्द्र सरकार आतंकवादियों के परिवार की पेंशन बांधने जा रही है और भी बातें आगे बढ़ी। कसाब का जिक्र हुआ, सोहराबुद्दीन का हुआ। अंत में मैंने मित्रो के साथ एक निर्णय किया कि,हम भी बहरे प्रशासन व सोई हुई हिंदू जनता को जगाने के लिए कोई ऐसा कार्य करे कि हमारी बात को पूरा मीडिया जगत पूरे देश में पहुचाये। निर्णय भी ले लिया कि भगत सिंह जी के अनुरूप हम भी तेज धमाके वाला व धुएँ वाला कोई बम फोडेंगे । जिससे कोई व्यक्ति आह़त न हो,तथा अपनी ग्रिफतारी देकर जनता को जगायंगे। अब बात थी कि बम कहाँ फोड़ा ज

ईश्वर एक नाम अनेक

ऋग्वेद कहता है कि ईश्वर एक है किन्तु दृष्टिभेद से मनीषियों ने उसे भिन्न-भिन्न नाम दे रखा है । जैसे एक ही व्यक्ति दृष्टिभेद के कारण परिवार के लोगों द्वारा पिता, भाई, चाचा, मामा, फूफा, दादा, बहनोई, भतीजा, पुत्र, भांजा, पोता, नाती आदि नामों से संबोधित होता है, वैसे ही ईश्वर भी भिन्न-भिन्न कर्ताभाव के कारण अनेक नाम वाला हो जाता है। यथा- जिस रूप में वह सृष्टिकर्ता है वह ब्रह्मा कहलाता है । जिस रूप में वह विद्या का सागर है उसका नाम सरस्वती है । जिस रूप में वह सर्वत्र व्याप्त है या जगत को धारण करने वाला है उसका नाम विष्णु है । जिस रूप में वह समस्त धन-सम्पत्ति और वैभव का स्वामी है उसका नाम लक्ष्मी है । जिस रूप में वह संहारकर्ता है उसका नाम रुद्र है । जिस रूप में वह कल्याण करने वाला है उसका नाम शिव है । जिस रूप में वह समस्त शक्ति का स्वामी है उसका नाम पार्वती है, दुर्गा है । जिस रूप मे वह सबका काल है उसका नाम काली है । जिस रूप मे वह सामूहिक बुद्धि का परिचायक है उसका नाम गणेश है । जिस रूप में वह पराक्रम का भण्डार है उसका नाम स्कंद है । जिस रूप में वह आनन्ददाता है, मनोहार

कायरता की पराकाष्ठा

नेहरू से लेकर आज तक भारत के राजनेता सीमाओं से छेड़छाड़ आराम से सहन करते आए है। महाभारत में भीष्म पिता ने कहा है कि,"राष्ट्र की सीमाएं माता के वस्त्रों के सामान होती है,कोई भी बेटा जिनसे छेड़छाड़ सहन नही कर सकता."हमारे देश के नेतागण चाहे चीन हो या बांग्लादेश ,कोई भी कितना ही अतिक्रमण करले वे उसे सहन तो करते ही है साथ ही उसे भारतीय जनता से छुपाते भी है। पिछले साल अकेले चीन ने ही भारत में घुसपैठ का लगभग २२५ बार दुस्साहस किया है। चीन ने १९५० में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद जब लद्दाख में ओक्सिचीन पर अतिक्रमण करके निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया था तो जानकारी के बावजूद नेहरू ने न केवल कोई कार्यवाही की बल्कि इस तथ्य को भारतीय जनता से छुपाने की पूरी कोशिश भी की। ओक्सिचीन के आलावा चीन ने शिप्कला,बारहोती,तवांग व नेफा में भी घुसपैठ करके अपने अड्डे बना लिए थे। भारत का ३८००० वर्ग किलोमीटर का भाग चीन १९५५ तक कब्जा चुका था। बाद में संसद में हंगामा होने पर नेहरू ने जवाब दिया कि ,"वहाँ तो घास तक भी नही उगती।" नेहरू की इस बात का जवाब उस समय के रक्षा मंत्री रहे महावीर सिंह त्यागी ने ज

पिछली एक सदी में इस्लाम का सबसे बड़ा बुद्धिजीवी अल्लामा इकबाल

इस्लाम में पिछली सदी में एक महानायक पैदा हुआ अल्लामा इक़बाल। सारे जहाँ से अच्छा लिखने वाले इस शायर को निसंदेह २० वीं सदी का इस्लाम का सबसे बड़ा बुद्धिजीवी व शुभ चिन्तक माना गया है। आजादी के बाद भी इस शायर को हमारे देश भारत के बुद्धिजीवी व धर्म निर्पेक्ष इस शायर की प्रसंशा करते नही अघाते। सन १९०९ में इसी शायर ने शिकवा नाम से एक पुस्तक की रचना की और ४ वर्ष बाद इसी की पूरक एक और जवाब ऐ शिकवा की रचना की। इन पुस्तकों में इकबाल ने अल्लाह से कुछ मामूली सी शिकायत की है। इस्लाम के इस बुद्धिजीवी ने अल्लाह से शिकायत की है कि "सारी दुनिया में हम मुसलमानों ने तुम्हारे नाम पर ही सब कुछ किया। तमाम काफिरों , दूसरे धर्मो को मानने वालो को ख़त्म कर दिया,उनकी मुर्तिया तोडी,उनकी पूरी सभ्यताये उजाड़ डाली। केवल इसलिए की वे सब तुम्हारी सत्ता को माने ,इस्लाम को कबूलें। मगर ऐ अल्लाह, तेरे लिए इतना कुछ करने वाले मुसलमानों को तूने क्या दिया? कुछ भी तो नही। उल्टे दुनिया के काफिर मजे से रह रहे है। उन्हें हूरे व नियामाते यहीं धरती पर मिल रही है, जबकि मुसलमान दुखी है। अब काफिर इस्लाम को बीते ज़माने की बात समझत

हम भारतीय, सिकंदर महान? को सिकंदर महान क्यों माने

सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों को कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था। अपनी महत्वकन्क्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला। अपने आसपास के विद्रोहियों का दमन करके उसने इरान पर आक्रमण किया,इरान को जीतने के बाद गोर्दियास को जीता । गोर्दियास को जीतने के बाद टायर को नष्ट कर डाला। बेबीलोन को जीतकर पूरे राज्य में आग लगवा दी। बाद में अफगानिस्तान के क्षेत्र को रोंद्ता हुआ सिन्धु नदी तक चढ़ आया। सिकंदर को अपनी जीतों से घमंड होने लगा था । वह अपने को इश्वर का अवतार मानने लगा,तथा अपने को पूजा का अधिकारी समझने लगा। परंतु भारत में उसका वो मान मर्दन हुआ जो कि उसकी मौत का कारण बना। सिन्धु को पार करने के बाद भारतt के तीन छोटे छोटे राज्य थे। १-- ,ताक्स्शिला जहाँ का राजा अम्भी था। २--पोरस। ३--अम्भिसार ,जो की काश्मीर के चारो और फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था,इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने भी तठस्त रहकर सिकंदर की राह छोड़ दी, परंतु भारतमाता के वीर पुत्र पुरु ने सिकंदर से दो-दो हाथ करने का निर्णय कर लिया। आगे के युद्ध का वर्णन में यूर

संसद से सीधा प्रसारण-संसद चालीसा भाग १

देशवासियों सुनो झलकियाँ मै तुमको दिखलाता। राष्ट्र- अस्मिता के स्थल से सीधे ही बतियाता। चारदीवारी की खिड़की सब लो मै खोल रहा हूँ। सुनो देश के बन्दों मै संसद से बोल रहा हूँ।१। रंगमंच संसद है नेता अभिनेता बने हुए हैं। जन- सेवा अभिनय के रंग में सारे सने हुए हैं। पॉँच वर्ष तक इस नाटक का होगा अभिनय जारी। किस तरह लोग वोटों में बदलें होगी अब तैयारी।२। चुनाव छेत्र में गाली जिनको मुहं भरके देते थे। जनता से जिनको सदा सजग रहने को कहते थे। क्या-क्या तिकड़म करके सबने संसद पद जीते है। बाँट परस्पर अब सत्ता का रस मिलकर पीते हैं।३। जो धर्म आज तक आया मानवता का पाठ पढाता। सर्वधर्म- समभाव-प्रेम से हर पल जिसका नाता। वोटों की वृद्धि से कुछ न सरोकार उसका है। इसलिए संसद में होता तिरस्कार उसका है। ४। दो पक्षो बीच राष्ट्र की धज्जी उड़ती जाती। राष्ट्र-अस्मिता संसद में है खड़ी-खड़ी सिस्काती। पल-पल क्षन-क्षन उसका ही तो हाय मरण होता है। द्रुपद सुता का बार- बार यहाँ चीर-हरण होता है।५। आतंकवाद और छदम युद्ध का है जो पालनहारा। साझे में आतंकवाद का होगा अब निबटारा। आतंक मिटाने का उसके संग समझोता करती है। चोरों से मिलक