संसद से सीधा प्रसारण-संसद चालीसा भाग १

देशवासियों सुनो झलकियाँ मै तुमको दिखलाता।
राष्ट्र- अस्मिता के स्थल से सीधे ही बतियाता।
चारदीवारी की खिड़की सब लो मै खोल रहा हूँ।
सुनो देश के बन्दों मै संसद से बोल रहा हूँ।१।

रंगमंच संसद है नेता अभिनेता बने हुए हैं।
जन- सेवा अभिनय के रंग में सारे सने हुए हैं।
पॉँच वर्ष तक इस नाटक का होगा अभिनय जारी।
किस तरह लोग वोटों में बदलें होगी अब तैयारी।२।

चुनाव छेत्र में गाली जिनको मुहं भरके देते थे।
जनता से जिनको सदा सजग रहने को कहते थे।
क्या-क्या तिकड़म करके सबने संसद पद जीते है।
बाँट परस्पर अब सत्ता का रस मिलकर पीते हैं।३।

जो धर्म आज तक आया मानवता का पाठ पढाता।
सर्वधर्म-समभाव-प्रेम से हर पल जिसका नाता।
वोटों की वृद्धि से कुछ न सरोकार उसका है।
इसलिए संसद में होता तिरस्कार उसका है।४।

दो पक्षो बीच राष्ट्र की धज्जी उड़ती जाती।
राष्ट्र-अस्मिता संसद में है खड़ी-खड़ी सिस्काती।
पल-पल क्षन-क्षन उसका ही तो हाय मरण होता है।
द्रुपद सुता का बार-बार यहाँ चीर-हरण होता है।५।

आतंकवाद और छदम युद्ध का है जो पालनहारा।
साझे में आतंकवाद का होगा अब निबटारा।
आतंक मिटाने का उसके संग समझोता करती है।
चोरों से मिलकर चोर पकड़ने का दावा करती है।६।

विषय राष्ट्र के एक वर्ग पर यहाँ ठिटक जाते हैं।
राष्ट्र-प्रेम के सारे मानक यहाँ छिटक जाते हैं।
अर्थ-बजट की द्रष्टि जाकर एक जगह टिकती है।
एक वर्ग की मनुहारों पर संसद यह बिकती है।7.

अफजल के बदले मे जो है वोट डालने जाते।
सत्ता की नजरों में वे ही राष्ट्र भक्त कहलाते।
आज देश की गर्दन पर जो फेर रहे हैं आरे।
उनकी वोटो से विजयी नही क्या संसद के हत्यारे।8.

सर्वोच्च अदालत ने फाँसी का जिसको दंड दिया है।
सांसद ने तो उसको ही वोटो में बदल लिया है।
इसलिए आज यह देश जिसे है अपराधी ठहराता।
वही जेल मे आज बैठकर बिरयानी है खाता।9.

मौत बांटते जिसको सबने टी० वी० पर पहचाना।
धुआं उगलती बंदूकों को दुनिया भर ने जाना।
सत्ता का सब खेल समझ वह हत्त्यारा गदगद है।
हत्या का प्रमाण ढूंढती अभी तलक संसद है।10.

यह माइक-कुर्सी फैंक वीरता रोज-रोज दिखलाती।
पर शत्रु की घुड़की पर है हाथ मसल रह जाती।
जाने क्या-क्या कर जुगाड़ यहाँ कायरता घुस आई।
फ़िर भांड-मंडली मधुर सुरों का पुरुष्कार है लायी।११।

जब एक पंथ से आतंकियों की खेप पकड़ में आती।
वोट खिसकती सोच-सोच यह संसद घबरा जाती।
तब धर्म दूसरे पर भी आतंकी का ठप्पा यह धरती है।
यूँ लोकतंत्र में सैक्युलरती की रक्षा यह करती है। १२।
क्रमशः

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