यदि आप बटुकेश्वर दत्त(batukeshvar datt) हैं तो प्रमाण लाइए.

एक वाक्य में क्रान्ति शब्द का अर्थप्रगति केलियेपरिवर्तन की भावना एवँ आकाँक्षाहै लोगसाधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं केसाथचिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार से हीकाँपनेलगते हैं यही एक अकर्मण्यता की भावना है,जिसकेस्थान पर क्रान्तिकारी भावना जागृत करनेकीआवश्यकता है दूसरे शब्दों में कहा जा सकता हैकिअकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता हैऔररूढ़ीवादी शक्तियाँ मानव समाज को कुमार्ग परलेजाती हैं यही परिस्थितियाँ मानव समाजकीउन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं क्रान्तिकी इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी रूप पर ओतप्रोत रहनी चाहिये, जिससे किरूढ़ीवादीशक्तियाँ मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिये सँगठित हो सकें यहआवश्यक हैकि पुरानी व्यवस्था सदैव रहे और वह नयी व्यवस्था के लिये स्थान रिक्त करती रहे,जिससे कि एकआदर्श व्यवस्था सँसार को बिगड़ने से रोक सके यह है हमारा अभिप्राय जिसको हृदय मेंरख कर हमइन्क़लाब ज़िन्दाबादका नारा ऊँचा करते हैं 22, दिसम्बर, 1929 भगत सिंह - बी. के.दत्त पत्र कामूलपाठ आभार - भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज़ / प्रथम सँस्करण 1986

क्या मेरे प्यारे देशवासी भगत सिंह के साथी बी० के० दत्त यानि की बटुकेश्वर दत्त के बारे में जानतेहैं?अगर आप असेम्बली में भगत सिंह के साथ बम फेंककर पूरे विश्व को भोच्च्का कर देने वालेक्रन्तिकारीको सोच रहे हैं तो आप बिलकुल सही हैं

किन्तु क्या किसी को मालूम है कि सन १९३० के पश्चात उस महान हुतात्मा का क्या हुआ

असेम्बली में बम फेंक कर भगत सिंह के साथ अपनी ग्रिफ्तारी देकर बटुकेश्वर जी को लम्बी कारावासहोगयी इससे पहले इनका जीवन सम्पन्नता के साथ बीत रहा था लम्बे कारावास के बाद स्वतंत्रभारतमें उनके साथ क्या हुआ?स्वतंत्र भारत ने उन्हें क्या दिया?
आजादी की खातिर 15 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार मिला एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये।

बाद में उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया ,किन्तु वहां भी वे असफल रहे.
उनके पास जीविका का कोई साधन नहीं थादो-दोदिनजेल काटने वाले और उन चोर उचक्कों को जो कांग्रेसियों के चमचे थे उन पर आजाद सरकारसरकारीपरमिट,बस परमिट लुटा रही थी लोगों के समझाने के पश्चात् दत्त साहब एक बस के परमिट केलिएपटना के जिलाधिकारी के पास गए
जिलाधिकारी ने उन्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया ,
और उनसे कहा की यदि आप बटुकेश्वर दत्त हैं तो प्रमाण लेकर आईये. जब दत्त जी के साथ गए लोगों ने जिलाधिकारी को समझाना चाहा तो वहां पर उपस्थित कांग्रेसी गुंडों ने उन्हें वहां से धकियाकर बहार निकाल दिया.अत :वे वहां से आकर पटना में ही एक अनजान से स्थान पर अपनी पत्नी अंजली दत्त के साथ गरीबी में ही जीवन काटने लगे. १९६२ के आस पास जब वो बीमार रहने लगे,तब कुछ राष्ट्रभक्तों ने इनके बारे में जनता को जागरूक करने का बीड़ा उठाया. ।बटुकेश्वर दत्त के 1962 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एडियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

इसके बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया और आजाद, केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर से मिले। पंजाब सरकार ने एक हजार रुपए का चेक बिहार सरकार को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री केबी सहाय को लिखा कि यदि वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली या चंडीगढ़ में इलाज का व्यय वहन करने को तैयार हैं।

बिहार सरकार की उदासीनता और उपेक्षा के कारण क्रांतिकारी बैकुंठनाथ शुक्ला पटना के सरकारी अस्पताल में असमय ही दम तोड़ चुके थे। अत: बिहार सरकार हरकत में आयी और पटना मेडिकल कॉलेज में ड़ॉ मुखोपाध्याय ने दत्त का इलाज शुरू किया। मगर उनकी हालत बिगड़ती गयी, क्योंकि उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाया था और 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया।

दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा। उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। पीठ में असहनीय दर्द के इलाज के लिए किए जाने वाले कोबाल्ट ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल एम्स में थी, लेकिन वहां भी कमरा मिलने में देरी हुई। 23 नवंबर को पहली दफा उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और 11 दिसंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया।

बाद में पता चला कि दत्त बाबू को कैंसर है और उनकी जिंदगी के चंद दिन ही शेष बचे हैं। भीषण वेदना झेल रहे दत्त चेहरे पर शिकन भी न आने देते थे।

पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए। छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया .

टिप्पणियाँ

  1. Bahut Acchi Jaankari di ... mujh jaison ko to pata bhi nahi tha ye sab.. Abhar apka.

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  2. कांग्रेसी कुत्ते देश को आजादी दिलवाने के नाम पर नोच नोच के खा रहे है. और जिन महान लोगो ने सच में देश के लिए कुछ किया था वो गुमनामी की मौत मर गए. ना जाने देश की जनता की आँखे कब खुलेंगी.
    बोहोत ही अच्छी जानकारी के लिए आपको धन्यवाद.

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  3. क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एडियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

    उन्हें झंडा फहराने का शोक था.
    हमें झंडा बचाने का शोक था.
    जरुरत थी उसके लिए जान देने की
    वर्ना हमें भी कब मरजाने का शोक था

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  4. आप बटुकेश्वर दत्त हैं तो प्रमाण लेकर आईये.
    मेरे अपने मेरे होने की निसानी मांगे .................
    क्या कहूँ ? निशब्द हूँ ! संक्षेप में यही कहूँगा -बहुत अच्छी जानकारी,
    पी.एस.भाकुनी

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  5. आदरणीय नविन त्यागी जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ| आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया|
    यह पोस्ट ह्रदय को छलनी कर गयी| इस देश के महान क्रांतिकारियों का ऐसा हाल केवल और केवल कांग्रेस ने ही किया है| दरअसल इन्होने पूरे देश पर अपना कब्ज़ा जमा लिया जबकि क्रांतिकारियों का सपना था एक ऐसा भारत बनाने का जिसमे सभी को बराबर के अधिकार मिलें|
    शर्म आती है इस देश के तथाकथित कर्धारों पर| इसी प्रकार शहीद उद्धम सिंह के परिवार का हाल भी बुरा है| उनके पोते व पडपोते पंजाब में मजदूरी कर रहे हैं...

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  6. करुण प्रसंग।

    कॉंग्रेस की हमेशा यही नीति रही, जो भी गैर कॉंग्रेसी स्वतन्त्रता सेनानी थे उन्हें खुड्डे लाइन लगाने की। इसलिये इस प्रकरण से भी आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

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  7. Sir, batukeshwar dutt ji per blog likhne ke liye sukriya, per ek baat kahana chahuga, sab kuch meri book se matter liya gaya, per mera ya book ka naam tak na liya gaya,kisi ne sach kaha hei neev ke pataher buland emarat banne ke baad neeche dab jate hei, unhe koi nahi poochta, meri tarah
    Anil Verma
    anilverma55555@gmail.com

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  8. anil ji chhama chahunga,aapko agar kuchh bura laga.kintu maine aapka kabhi naam nahi suna.
    jahan tak lekh kee bat hai to wo maine
    vachnesh tripathee ji ki pustak va navbharat samachar patr se liya gaya hai.lekin varma ji agar aapne esee koi pustak likhi hai to mai use jaroor padhna chahunga.aap apna mo.nu.bhejen,

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  9. ek sachey deshbhakt batukeshwar datt i salute him

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  10. त्यागी जी ,बेहद रोचक जानकारी दी ,प्रयास सफल हो लगे रहें।
    देशभक्त नेताओं में क्रांतिकारियों का आजाद भारत में गुमनामी में कइयों को देखा गया ,कई तो सिद्दांत के कारण कुछ मांगने नही जाते थे कुछ को अपमानित होना पड़ा जेसे बिहार पटना के तत्कालीन जिला कलेकटर ने सामंती बनकर बटुकेश्वर जी ने ऐसे कई अपमानित घूंट पिए। जबकि उनका सम्मान मिडिया ने किया और फिर उस समय के गृह मंत्री गुलज़ारीलाल नंदा जी ने फिर पंजाब सरकार ने भी। गुलज़ारीलाल नंदा जी के पास ऐसी कोई घटना आने के बाद वे चुप नही बैठते थे वे पूरा सम्मान करते थे।
    भाभी जी ने आजादी की लड़ाई में महान कार्य के बदले कभी कुछ नही लिया ,गाजियाबाद में उनसे कई बार मिलकर हमने प्रयास किया मगर वे कहती थीं देना ही है तो देश को नैतिकता दो आजादी के मूल्य दो ,रास्ट्र वादिता दो ,सर्वधर्म सदभावना दो ,ईमानदार शाशन लायक मतदान दो ,भारतीय सभ्यता दो ,नै पीढ़ी को संस्कार दो ,पाश्चात्य सभ्यता को धुत्कार दो। उसे हमने जीवन में उतारा और उसी रह पर चल रहे हैं।
    कुर्बानिया देने वाले नही सोचते की उन्हें क्या मिल रहा है क्या नही ,उन्हें दुःख होता है सिर्फ कि आजादी क्या इसलिए हुई कि उसका राजनेतिक सदाचार का चीर हरण हो रहा है वहाँ कौन कृष्ण आएगा केवल जनता की नैतिकता और उसका मतदान। देश में लाल बहादुर शास्त्री जी और गुलज़ारीलाल नंदा के बाद ऐसा कोई नही आया जो राजनेतिक सदाचार की बात करे -आज तो राजनीति लोक लुभावन जनसभाओं में असलीलता की हदें पार करती जा रही है क्या यही है भाग्य विधाता -जनगण अधिनायक जय है -?
    " लोकतंत्र जिनके हाथों में कुचला जा रहा है इतिहास क्या इन्हे माफ़ करेगा" -?
    जय हिन्द
    आपका,के आर अरुण, पिपल्स फ़ोरम आफ इंडिया एवं
    ( अलर्ट न्यूज़ सर्विस- ए एन एस )Email,alertnews100@gmail.com

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