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दिग्विजय सिंह इसाई है,(digvijay is a converted christian)

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दिग्विजय सिंह के तेवर हिन्दुओं के विरुद्ध कुछ ज्यादा ही गर्म हो रहे हैं।कोई भी नहीं समझ पा रहा है कि वो ऐसा क्यों कर रहा है। अगर इस बात को सत्य माना जाय कि दिग्विजय हिन्दू ही नहीं है ( http://en.wikipedia.org/wiki/Digvijay_Singh_(politician ) (Digvijay Singh was born in the royal family of Raghogarh principality, in Guna district of Madhya Pradesh. He is a rajput also known popularly as Diggi Raja.He studied at the Daly College , Indore, a private school established in 1882. During his school days he was an outstanding sportsman. He was a member of the school team in cricket, hockey and soccer. He represented Central Zone schools in cricket, and also played hockey and football at the college level.He also excelled in squash, and was the Central India champion at the junior level for six years from 1960 to 1966.He also held national ranking in this game.[ clarification needed ]. He is a converted christian.) तब इसका अंदाजा स्यवं ही लगाया जा सकता है।क्यों कि इसाई बनने के बाद हिंदुत्व क

गणित विद्या और शून्य का आविष्कार

सभी यह जानते हैं कि गणित में शून्य और दशमलव का आविष्कार भारत ने किया है किन्तु यह आंशिक सत्य है क्योंकि गणित विद्या का मूल(कारण) वेदों में है जिसमें न केवल शून्य से लेकर ९ तक सभी प्राकृतिक अंको का वर्णन है वरन अंक गणित, बीज गणित और रेखा गणित सभी गणित विद्या के ३ आधार ईश्वर ने हमको दिये हैं। बहुत से लोग यह मानते हैं आर्य भट्ट ने शून्य का या दशमलव का आविष्कार किया था जोकि गलत है क्योंकि यह तो पहले से ही वेदों में है, आर्य भट्ट निश्चित तौर पर एक महान गणितज्ञ थे इसमें कोई सन्देह नहीं है किन्तु प्राकृतिक संख्याओं के निर्माण का विज्ञान मानव ज्ञान से बहार की बात है। मैं यहाँ वेदों के मन्त्र तो नहीं लिख रहा हूँ किन्तु उनमें से उधृत कुछ एक बातों को लिख रहा हूँ प्रमाण के तौर पर। अंक, बीज और रेखा भेद से जो तीन प्रकार की गणित विद्या सिद्ध की जाती है , उनमें से प्रथम अंक(१) जो संख्या है, सो दो बार गणने से २ की वाचक होती है। जैसे १+१=२। ऐसे ही एक के आगे एक तथा एक के आगे दो, वा दो के आगे १ आदि जोड़ने से ९ तक अंक होते हैं। इसी प्रकार एक के साथ तीन(३) जोड़ने से चार (४) तथा तीन(३) को तीन(३) के साथ जोड़न

साम्यवादी क्रान्ति के सूत्रधार लेनिन भी वीर सावरकर के घोर प्रशंसक थे.

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भारत की संसद में जब वीर सावरकर के चित्र की प्रतिस्थापना की गयी तो उस समय के सारे कोंग्रेसी सांसद सोनिया मैनो के नेर्तत्व में तथा सारे कम्युनिष्ट सांसद समारोह का बहिष्कार करके चले गए थे। केवल मात्र सोमनाथ चटर्जी ही राजग के सांसदों के साथ संसद में उपस्थित थे। वीर सावरकर मात्र एक सशस्त्र क्रांतिकारी ही नहीं वरन एक युगद्रष्टा थे। युगद्रष्टा के साथ साथ वे एक राष्ट्र स्रष्टा भी थे। वे विश्व क्रांतिकारिता के सूत्रधार और व्यवस्थापक भी थे। उनकी वीरता, धीरता व पांडित्य और कुशल नेत्रत्व को देखकर पूरा विश्व चकित था। साम्यवादी क्रांति के सूत्रधार लेनिन भी वीर सावरकर की विलक्षणता के अत्यधिक प्रभावित थे। जब रूस के क्रांति की प्रष्ट भूमि तैयार हो रही थी,तब लेनिन रूस से जाकर वीर सावरकर के पास जाकर इंग्लेंड में इण्डिया हाउस में छिपे थे।लेनिन अपने अज्ञात वास में वीर सावरकर से रोज घंटों भावी अर्थव्यवस्था पर विचार-विमर्श करते थे। रुसी क्रान्ति सफल हो जाने के पश्चात लेनिन ने अपने प्रथम बजट में वीर सावरकर का आदर सहित उल्लेख किया। उसके पश्चात लेनिन सावरकर से तीन बार और मिले। दोनों के बीच वैचारिक सम्बन्ध लम्

हिन्दू धर्म के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है .

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डॉ० एनी बेसेंट का हिन्दू धर्म को कोसने वालों के मूह पर तमाचा भूलिये नहीं ! हिन्दू धर्म के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है। हिन्दू धर्म वह भूमि है जिसमे भारत की जड़े गहरी जमी हुई हैं और यदि इस भूमि से इसे उखाड़ा गया तो भारत वैसे ही सूख जायेगा जैसे कोई वृक्ष भूमि से उखाड़ने पर सूख जाता है। भारत में अनेक मत,संप्रदाय और वंशों के लोग पनप रहे हैं,किन्तु उनमे से कोई भी न तो भारत के अतीत के उषा काल में था, न उनमे कोई राष्ट्र के रूप में उसके स्थायित्व के लिए अनिवार्यत: आवयशक है। यदि आप हिन्दू धर्म छोड़ते है तो आप अपनी भारत माता के ह्रदय में छुरा घोंपते हैं।यदि भारत माता के जीवन-रक्त स्वरुप हिन्दू धर्म निकल जाता है तो माता गत-प्राण हो जाएगी। आर्य जाती की यह माता ,यह पद्भ्रष्ट जगत -सम्राज्ञी पहले ही आहत क्षत-विक्षत ,विजित और अवनत हुई है। किन्तु हिन्दू धर्म उसे जीवित रखे हुए है,अन्यथा उसकी गर्णा म्रतों में हुई होती। यदि आप अपने भविष्य को मूल्यवान समझते हैं, अपनी मात्रभूमि से प्रेम करते हैं,तो अपने प्राचीन धर्म की अपनी पकड़ को छोडिये नहीं,उस निष्ठां से अलग मत होइए जिस पर भारत के प्राण निर्भर हैं।

भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य

"हिमालय के ऑंगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार।" “जगे हम लगे जगाने विश्व, देश में फिर फैला आलोक, व्योम तम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संस्कृति हो उठी अशोक।” परिवर्तन की जीवंत प्रक्रिया सतत् प्रवहमान है। संहार के बाद सृजन, क्रांति के बाद शांति और संघर्ष के बाद विमर्श का सिलसिला मानव के अन्तर्वाह्य जगत में चलता रहता है। मनुष्य का असन्तोष से भरा जीवन आजन्म संधर्ष की स्थिति को झेलता रहता है, लड़ाइयाँ लड़ता है, नयी व्यवस्था के निर्माण के लिए पुरानी व्यवस्था पर आघात करता है, इसी द्वन्द्व की स्थिति में वह जीता मरता रहता है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के निर्माण में व्यक्ति की यही संधर्षशील चेतना कार्यरत है। गुलामी के बन्धन को तोड़कर उन्मुक्त होने की कामना ने 1857 में क्रान्ति की नयी जमीन को खोज निकाला। इस क्रान्ति महायज्ञ में प्रथम आहुति देने वाले बलिया जनपद के हलद्वीप गाँव के ब्राह्यण कुलोत्पन्न पंडित मंगल पाण्डेय ने 8 अप्रैल 1857 को अपनी शहादत से स्वतन्त्रता का प्रथम दीप जलाया। आजादी को लेकर देश में व्याप्त उथल-पुथल को हिन्दी कवियों ने अपनी कविता का विषय बनाकर साह

स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है,और मै इसे लेकर रहूँगा.

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(२३ जुलाई, 1856- १ अगस्त १९२०) "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है,और मै इसे लेकर रहूँगा।" बाल गंगाधर तिलक (२३ जुलाई, 1856- १ अगस्त १९२०) भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ने अंग्रेजी सरकार की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया। ‘क्या ये सरकार पागल हो गई है?’ और 'बेशर्म सरकार' जैसे उनके लेखों ने आम भारतीयों के मन में रोष की लहर दौड़ा दी। दो वर्षों में ही ‘केसरी’ देश का सबसे ज्यादा बिकने वा

ये है झांसी की रानी (jhansi ki rani)का असली चित्र.

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मित्रो आज १७ जून को झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की पुन्यथिति है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का यह एकमात्र फोटो है, जिसे कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज फोटोग्राफर जॉनस्टोन एंड हॉटमैन द्वारा 1850 में ही खींचा गया था। यह फोटो अहमदाबाद निवासी चित्रकार अमित अंबालाल के संग्रह में मौजूद है। The only photo of Rani Laxmibai of Jhansi, which living in Calcutta in 1850 by the British photographer Ahugoman Jonstone and was pulled. This photo Ahmedabad resident artist Amit Ambalal exists in the collection.

छोडूंगा नहीं एक दिन तो शमशान घाट आवेगा.

मेरी सबसे पहली तुकबंदी "दूर की सोच " एक दिन सुरेन्द्र शर्मा जी मन्दिर पूजा को गए। मन्दिर से जब बाहर आए ,अपने नए जूते गायब पाये । जूते गायब देखकर ,सुरेन्द्र जी ने मचाया शोर, तब एक फूल वाले से पता चला , कि जूते ले गया शैल नाम का चोर। ठाणे में रपट लिखाई, जासूसों को पीछे लगाया, पर शैल नाम का चोर कहीं पकड़ में न आया। थक हार कर बेचारे श्रीमान,जा पहुचे सीधे शमसान , बोले शैल अब देखूँगा ,तने कोण बचावेगा छोडूँगा नही एक दिन तो शमशान घाट आवेगा।

यह मेरे इस देश को हो गया क्या आज है.

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यह मेरे इस देशं को ये हो गया क्या आज है ये जिन्दगी की प्रात है या जिन्दगी की सांझ है। उद्देश्यहीन भीड़ क्यों हर तरफ खड़ी हुई। हर आदमी के चेहरे पे गम की परत चढ़ी हुई। यूं देखने मे हर कोई लगता तो पास-पास है। लेकिन दिलों की दूरियां!! कैसा विरोधाभास है? क्यों जिन्दगी के गीत की ये बेसुरी आवाज है। ये मेरे इस ............................................................ ॥ हर सुबह की धूप का सूरज कही है को गया । चांदनी समेटकर अब चाँद भी है सो गया। हर गली के बीच में वहशियाना शोर है। क्यों खुद की आत्मा का खुद आदमी ही चोर है? जाने कैसा बज रहा ये जिन्दगी का साज है। ये मेरे इस देश .............................................. ॥ हर तरफ है नाचती हिंसा भरी जवानिया । मेरे वतन में रह गयी अहिंसा की बस कहानिया। अन्न महंगा है तो क्या खून तो सस्ता हुआ। यहाँ आदमी को आदमी है खा रहा हँसता हुआ। गाँधी के सपनो पे बना ये कैसा रामराज है !!!!! ये मेरे इस देश को .................................................... ॥ जीने की लालसा लिए बस जी रहा है आदमी । यूं विष का घूँट आप ही तो पी रहा है आदमी। असत्य और कपट की जब बू रह

भारतीय स्वतंत्रता के जनक(fathar of indian independece)

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(veer savarkar) "वीर सावरकर की पीढ़ी में उनके समान प्रभावी, साहसी,ढ्रद,देशभक्त भारतवर्ष में पैदा नही हुआ है। सावरकर ने जो कष्ट सहे हैं,उसी के फलस्वरूप भारत ने स्वाधीनता प्राप्त की है। आदर्श सिधांतों को निभाने के लिए जी जान से प्रयत्न करने वालो में वीर सावरकर का स्थान बहुत ऊचा है। ------वे केवल हिन्दी देशभक्त hee नही,वरन समस्त विश्व के प्रेरणा श्रोत हैं। में तो मानव समाज के दर्शनकार के रूप में उन्हें देखता हूँ। भारतीय जनता का यह आध्य कर्तव्य है कि सम्पूर्ण स्वतंत्रता के जनक के रूप में उनका सत्कार करे."---ये शब्द इंग्लेंड के सुप्रसिद्ध विद्वान् व पत्रकार श्री गाय अल्द्रेड के हैं, जो सावरकर के समय में हेराल्ड,फ्री वूमेन एवं जस्टिस आदि पत्रों के सम्पादक, प्रकाशक व प्रतिनिधि थे.(गाय अल्द्रेड) २५ जून सन १९४४ को सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना पर नेताजी सुभाष चंद्र बोश ने सिंगापुर रेडियो पर अपने संदेश में कहा कि,-------"जब भ्रमित राजनैतिक विचारों और अदूरदर्शिता के कारन कांग्रेस के लगभग सभी नेता अंग्रेज

राजनीती की मण्डी में सी० बी० आइ०(c.b.i.) रंडी की ओकात रखती है.

पिछले कुछ वर्षों से केंद्र की संप्रग सरकार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के पीछे हाथ-मूंह धोकर पड़ी थी। वहीँ मायावती ने भी कोंग्रेस को कोसने में कोई कमी नहीं की थी। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि सभी विपक्षियों के केंद्र सरकार के विरूद्ध खड़े होने के तुरंत बाद मायावती अचानक पलटा मार कर कोंग्रेस के पक्ष में खडी हो गयी और संप्रग सरकार की सभी नीतियों को ठीक बताया। उससे पुर्व भी सन २००७ में परमाणु समझोते में जब सरकार को महसूस होने लगा कि वामपंथी दल इस समझोते में उसका समर्थन नहीं करेंगे तो अचानक मुलायम सिंह ने सरकार के साथ सहमती जता दी, ओर संप्रग सरकार को समर्थन दे दिया। इसी प्रकार बोफोर्स के आरोपी व सोनिया गाँधी के मित्र क्वात्रोची को भी संप्रग सरकार ने क्लीन चिट दे दी । पिछली सरकार में लालू प्रसाद यादव संप्रग सरकार के साथ थे,उनके विरूद्ध कई घोटालों के मुक़दमे चल रहे थे तथा फैंसला भी आने वाला था कि अचानक उस न्यायधीश का तबादला हो गया जो लालू के केस को देख रहा था। तथा इन्कमटेक्स के ऑफिसरों की मीटिंग में सारा का सारा मामला ही ढीला कर दिया गया। लालू को संप्रग सरकार के समर्थन का इनाम मिल गया। ये

सन १९४७ में भारत( bharat ) के बटवारे का सबसे बड़ा कारण

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कोन कहता है कि बुड्ढे इश्क नहीं करते ,इश्क तो करते है पर लोग उन पर शक नहीं करते । पर भाई पता नहीं लोग हम पर शक क्यों करते हैं । अरे कम से कम भीड़ में तो शर्म की होती। तू जहाँ जहाँ ,में वहां वहां तुसी न जाओ. बराबर में तो मै ही बैठूँगा। हम तो आपकी हर प्रकार से सेवा करेंगे। चाहे कितना भी झुकना क्यों न पड़े। अब लोगो का काम तो है कहना। नेहरू ने लेडी एडविना के कहने पर ही पकिस्तान का बंटवारा माना था। क्यों माना , इसका उत्तर आपके सामने है । (सभी चित्र गूगल से साभार )

घर में उनके कुत्तों पर भी ,फोंजों के हैं पहरे रहते

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सोने के महलों में कुछ तो,ख़ास-ख़ास हैं बहरे रहते। कुछ की तो गर्दन के ऊपर ,दो-दो हरदम चेहरे रहते॥ कहने को मासूम बड़े ही,दिखलाई सबको देते वे । दिल में उनके अन्दर भैया,राज बड़े ही गहरे रहते॥ कसमे खाते रहते जिस पल,दहशतगर्दी से लड़ने की। दहशतगर्दों के ही उनके,उस पल घर में डेरे रहते॥ हत्याओं का दौर देखने ,सज धज कर जब वे जाते। कातिल के हमदर्द सयापे, आँखों को हैं घेरे रहते॥ हर मुश्किल से टकराने का, बंधा रहे हैं साहस जो जो। घर में उनके कुत्तों पर भी , फोंजो के हैं पहरे रहते॥ धरती तपने लगती जब यूं ,लेकर अपने साथ बगुले। सब कुछ स्वाहा करने को फिर,नहीं जलजले ठहरे रहते॥

बाल कविता

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मुझको पैसे चार मिले हैं, जितनी जितनी बार मिले हैं , खर्च नहीं में उनको करती , जोड़ जोड़ कर उनको रखती। बन्दूक एक दिन उनसे लाकर, अपने कंधे उसे लगाकर , मै भारत के शत्रु गिन-गिन , मार भागाउंगी एक दिन । अनाहिता त्यागी

कायर मनुष्य,कायर समाज व कायर राष्ट्र का कोई सहायक नहीं होता.

समझोतों से नहीं कभी भी युद्ध टला करते हैं। कायर जन ही इनसे खुद को स्वयं छला करते हैं।। स्वतंत्रता -काल से आज तक की कालावधि में पकिस्तान और भारत के मध्य लगभग १७५ बार से भी अधिक वार्तालापों के दौर चल चुके हैं। इस लम्बी वार्ताओं की कड़ी में उन सभी वार्तालापों के क्या परीणाम रहे,इसकी गहराई में जाने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही है। इसको संछेप में सीधे सीधे ही यही कहा जा सकता है कि पकिस्तान से भारत लगभग १७५ बार ही कूटनीतिक युद्ध में पराजित हो चुका है। १९४८ में पाकिस्तान के सैनिकों का कबाइलियों के वेश में आक्रमण रहा हो या १९६५ का युद्ध हो अथवा १९७१ या फिर १९९९ में कारगिल का युद्ध हो, भारत समर-छेत्र सैनिक विजय के प्राप्त करने के बावजूद भी बार बार हारा है। इन युद्दों में प्राप्त सैनिक विजय के लिए भारत का शासक वर्ग यदि अपनी पीठ थपथपाता है तो वह राष्ट्र को यह बतलाने का भी साहस करे कि विजय प्राप्त करने के उपरांत भी पाकिस्तान के किस भू-भाग को उसने भारत के अधिकृत किया है। अथवा कोन सा लाभ या लक्सय उसकी इन विजयों द्वारा प्राप्त किया गय

यहाँ देशद्रोही ही मंत्री व .संसद .........बनते है.

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सप्रग की पिछली सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर का नाम तो आप सभी को याद होगा। इस सरकार में भी नेताजी मैडम के दूत बनकर जगह जगह सोनिया गान करते घूम रहे है। मणिशंकर का चरित्र एक ऐसे राष्ट्रद्रोही का रहा है,जिसको कभी छमा नही किया जा सकता। १९६२ में जिस समय चीन ने भारत पर आक्रमण किया था,उस समय ये नेता लन्दन में पढ़ाई कर रहा था। पूरा का पूरा देश इस आक्रमण से शोकग्रस्त था। गाँव गाँव व नगर नगर से भारतीय सैनिको के लिए धन एकत्र किया जा रहा था।माता व बहनों ने अपने हाथों के जेवर व मंगलसूत्र तक भारतीय सेना के लिए दे दिए थे। सारा देश रो रहा था। परंतु लन्दन में ये देशद्रोही कुछ और ही खेल खेल रहा था। अय्यर व इसके साथी भी सैनिको के लिए चंदा एकत्र कर रहे थे किंतु वो जो धन एकत्र कर रहा था,वो भारतीय सैनिको के लिए नही बल्कि लाल सेना (चीनी सेना) के लिए धन एकत्र कर रहा था। उसकी इस बात का नेहरू को भी पता था।क्यो कि जिस समय अय्यर का चयन इंडियन फ़ौरन सर्विस में हुआ था, तो देश की सबसे बड़ी जासूसी संस्था ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा,तथा उपरोक्त बात का हवाला देते हुए उसके चयन पर रोक लगाने को

आप सभी को नववर्ष विक्रमी संवत २०६७ की हार्दिक शुभकामनाएं

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मित्रों जब अब से एक वर्ष पूर्व मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था ,तब सबसे प्रथम सम्राट विक्र्मद्वित्तीय के ऊपर दो लेख लिखे थे। विक्रमी संवत २०६६ समाप्त हो रहा है। संवत २०६७ का आरम्भ होने जा रहा है। भारतीय नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मै विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्र्माद्वितीय को नमन करते हुए वे दोनों लेख आपको दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूँ। विश्व विजेता सम्राट विक्रमादित्य ईसा से कई शताब्दी पूर्व भारत भूमि पर एक साम्रराज्य था मालव गण। मालव गण की राजधानी थी भारत की प्रसिद्ध नगरी उज्जेन । उज्जैन एक प्राचीन गणतंत्र राज्य था । प्रजावात्सल्या राजा नाबोवाहन की म्रत्यु के पश्चात उनके पुत्र गंधर्वसेन ने "महाराजाधिराज मालवाधिपति महेंद्राद्वित्तीय "की उपाधि धारण करके मालव गण को राजतन्त्र में बदल दिया । उस समय भारत में चार शक शासको का राज्य था। शक राजाओं के भ्रष्ट आचरणों की चर्चाएँ सुनकर गंधर्वसेन भी कामुक व निरंकुश हो गया। एकं बार मालव गण की राजधानी में एक जैन साध्वी पधारी।उनके रूप की सुन्दरता की चर्चा के कारण गंधर्व सेन भी उनके दर्शन करने पहुच गया । साध्वी के रूप ने उन्हें का

क्या भारत में ऐसा संभव है.

९\११ के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने सूझ-बूझ और साहसयुक्त कदम उठाया है,वैसा ही साहसी कदम उठाना अब भारत के लिए भी आवश्यक हो गया है. यह कहना है एक सेवा-निर्वत्त मुस्लिम सेनाधिकारी का. उनके कथानुसार अमेरिका ने इस हमले के बाद से ही मस्जिदों के इमामों को उनके इलाके में रहने वाले मुस्लिमों की गैर कानूनी गतिविधियों का जिम्मेवार निश्चित किया है,क्योकि प्रत्येक मुस्लिम किसी न किसी मस्जिद से जुड़ा होता है. इस नियम के अंतर्गत अब तक २०० से ज्यादा इमामों को उनके इलाके में संदिग्ध घटनाओं के कारण अमेरिका से बाहर निकाला जा चुका है. इसलिए अमेरिका में उसके बाद आतंकी घटनाओं की पुनरावृति नहीं हुई है. उस देशभक्त अधिकारी का सुझाव है की भारत सरकार को भी सभी मस्जिदों के प्रमुखों को उनसे सम्बंधित नागरिकों की गतिविधियों का जिमेदार मानना चाहिए. क्योकि उन्हें अपने इलाके में रहने वाले सभी नागरिकों की जानकारी होती है. वे कहते है की जिस दिन पाकिस्तानी आतकवादियों को भारतीय समर्थक मिलने बंद हो जायेंगे ,उसी दिन से भारत में आतंकवाद दम तोड़ने लगेगा . देश की सुरक्छा के लिए ऐसी इच्छा शक्ति आवश्यक है . लेकिन क्या भारत में ऐसा

मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के चेलों को समर्पित लेख)

स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे। अपनी पुस्तक "गीता और कुरआन "में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,"कुरआन" की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं। मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है कि इरानी "कुरुष " ,"कौरुष "व अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे। अरब में कुरैशों के अतिरिक्त "केदार" व "कुरुछेत्र" कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है। कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर "अल्लुज़ा" अर्ताथ शुक्र तारे का चिन्ह , अरबों के कुलगुरू "शुक्राचार्य "का प्रतीक ही है। भारत के कौरवों का सम्बन्ध

satyarthved.blogspot.com का एक वर्ष पूरा

पिछले कुछ महीनो में कभी बिमारी के कारण, कभी किसी और कारण से मै लेखन कार्य से दूर रहा. मित्रों २० फरवरी को ब्लॉग लेखन का पूरा एक साल हो गया है .१ वर्ष में काफी अच्छा अनुभव रहा .ब्लॉग के कारण पूरे भारत के कई प्रदेशों के लोगो को जाना .कुछ टुच्चे किस्म के लोगो से भी पाला पड़ा।आप समझ तो रहे ही होंगे कि में किन गुरु -चेलों कि बात कर रहा हूँ । खैर छोड़ो सब की अपनी अपनी आदत है कोई कितना भी टोके सुधरती नहीं। ब्लॉग के जन्म दिन पर कल से फिर आपके साथ रेगुलर आरहा हूँ । आप सभी से यही आशा करता हूँ कि आप सभी से पहले की तरह ही सहयोग मिलेगा । सभी मित्रों को बताना चाहता हूँ कि मैंने जो पाक्सिक पत्रिका राष्ट्र-समिधा कि शुरुआत की थी ,वह ३ महीने से लगातार छाप रही है। तकनीकी कारणों से मै उसे ब्लॉग पर नहीं डाल पाया हूँ। कल से रेगुलर होने के साथ साथ आज विदा लेता हूँ।